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Saturday 19 October 2013

आतंकी पनाह से दहल रहा मिथिलांचल


प्रणव प्रियदर्शी 
विरल संस्कृति, सहजीवन पद्धति और सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करनेवाला मिथिलांचल अब परेशान हो उठा है। आखिर हो भी क्यों नहीं; सहज जीवन का स्वर साधक मिथिला को आतंकियों की नजर डसती जा रही है। अमन-चैन की यह धरती आतंकी फसल को लहलहाते देख सतर्कता और सकुचाहट के साथ संशय में पड़ गयी है। मिथिला की विशेषता ही इसकी कमजोरी बन गयी है। आज यह भूमि आंतकियों का 'सेफ जोन' माना जा रहा है। बोधगया बम ब्लास्ट के बाद से बिहार भी पहली बार आतंकी हमला का केंद्र बिंदु बन गया। तिस पर से एक के बाद एक इंडियम मुजाहिदीन (आइएम), लश्कर-ए तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन के आतंकवादियों की लगातार गिरप्तारी से यह अपने अस्तित्व का मुंह जोहने लगा है। ये धरती अब खुफिया एजेंसी और राष्ट्रीय जांच एजेंसी की नजरों में गर गयी है।
      पहली बार आतंकवादी गतिविधियों को लेकर मिथिलांचल के दरभंगा जिले का नाम वर्ष 2007 में पहली बार सामने आया था।  इस वर्ष अंडर वर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहीम के खासमखास फजलुर रहमान की गिरफ्तारी के लिए जाले थाना के देवरा बंधौली गांव में छापामारी की गयी। हालांकि वह पुलिस की पकड़ से बच निकला था। 17 अप्रैल 2010 बेंगलूर के चिन्ना स्वामी स्टेडियम में हुए धमाके को लेकर बाढ़ समैला गांव के मोहम्मद कफिल, मोहम्मद कतिल और मोहम्मद गौहर अजीज को गिरफ्तार किया जा चुका है। गिरफ्तार आतंकवादियों से मिली सूचना पर ही इसी गांव के दो आतंकी मोहम्मद सैफ और फसी अहमद महमूद को सउदी अरब से पिछले वर्ष गिरफ्तार किया गया था। इस वर्ष 21 जनवरी 2013 को भटकल के बेहद करीबी मोहम्मद दानिश को दरभंगा जिले के लहेरियासराय थाना के चकजोहरा गांव से जांच एजेंसी ने गिरफ्तार किया था। यहां इसके रहने की सारी व्यवस्था भटकल ने ही किया था।
     इसतरह छोटे-बड़े स्तर पर यह क्रम जारी है। इसी क्रम में पिछला महीना 29 अगस्त को नेपाल से सटा बिहार के रक्सौल शहर से इंडियन मुजाहिदीन सरगना और सह संस्थापक यासीन भटकल और उसका करीबी असदुल्ला अख्तर उर्फ हड्डी को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी बिहार पुलिस और एमआइए के सामूहिक सहयोग से हुई। शेष आतंकवादियों की गिरफ्तारी के लिए जांच एजेंसी लगातार अभियान चला रहा है। बिहार पुलिस का कहना है कि अपने मिशन को अंजाम देने की योजना पे बात करने के लिए यहां इकट्ठा हुए थे। भटकल देश के 12 सबसे अधिक वांछित आंतकवादी की सूची में शामिल था। इसे पकड़ने में खुफिया एजेंसी को छह महीना का समय लग गया।
     हैदराबाद में इस वर्ष फरवरी में हुए बम धमाके में उसका हाथ होने का पता लगने के बाद पूरा तंत्र उसकी गिरफ्तारी में जुटा था। और, वह अपनी पहचान छिपा-छिपा के बिहार के गांवों को अपना आसरा बना रहा था। कहा जा रहा है कि भटकल की गिरफ्तारी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहीम एवं हाफिज सईद के करीबी आ लश्कर-ए-तैयबा का बम एक्सपर्ट आतंकवादी टुंडा के निशानदेही पर हुई। टुंडा की गिरफ्तारी पिछला महीना अगस्त में हुई। 70 वर्षीय अब्दुल करीम टुंडा को भारत-नेपाल सीमा पर बनबसा (महेंद्रनगर, उत्तराखंड) से दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया। 26 नवंबर (26/11) 2008 के चर्चित मुंबई आतंकी हमला के बाद भारत ने पाकिस्तान को जो 20 आतंकवादियों की सूची दी थी, उसमें टुंडा का नाम सबसे ऊपर था। टुंडा की गिरफ्तारी के एक ही सप्ताह बाद 24 अगस्त को बिहार के कटिहार जिला के कदवा थाना क्षेत्र के सिंगलपुर गांव से पुलिस ने टुंडा के सहयोगी मोहम्मद बशीर को गिरफ्तार किया।
     कनार्टक के भटकल गांव का रहनेवाला यासीन का ससुराल समस्तीपुर है। उसका लाभ उसे हरदम अपने काम को आगे बढ़ाने में मिलता रहा। गिरफ्तारी के बाद एनआइए उसे पूछताछ के लिए दरंभगा भी ले गयी थी। कड़ी सुरक्षा के बीच एनआइए की टीम भटकल को लेकर लेहरियासराय थानांतर्गत करमगंज मुहल्ला के पुस्तकालय ले गयी, जहां वह आया-जाया करता था। जमालचक गांव मंे जहां भटकल रहता था और अन्य जगहों से भी जानकारियां इकट्ठी की गयी। वर्ष 2010-12 के बीच भटकल डॉ. इमरान नाम से यूनानी चिकित्सक के रूप में यहां रहता था। इसके पीछे नवयुवकों को बहला-फुसला कर अपने संगठन का सदस्य बनाता था। इसी साल 21 जनवरी को भटकल का बेहद सहयोगी मोहम्मद दानिश को भी  दरभंगा के लेहरियासराय थाना के चकजोहरा से जांच एजेंसी ने गिरफ्तार किया था।
      इसतरह के आतंकी गतिविधियों के पद्चाप का मूल कारण है भारत-नेपाल की खुली सीमा। उत्तराखंड से बिहार तक नेपाल के साथ खली सीमा है। बिना अवरोध इस सीमा पर आवागमन जारी है। भारत-पाकिस्तान सीमा पर कड़ा पहड़ा है। इसलिए पाकिस्तानी आतंकवादी अपना मंसूबा पूरा करने के लिए बेधड़क इस सीमा का इसेतमाल कर रहे हैं। सैकड़ों कीलोमीटर इस सीमा पर प्रांतीय पुलिस और एसएसबी के जवान तैनात है, जिन पर सख्ती नहीं करने का दबाव है। धर्मावलंबियों के प्रति भारत में सदियों से उदारता का भाव है, जिसका लाभ आतंकवादी उठाते हैं।
      कहा जा रहा है कि बिहार के बॉर्डर इलाका मे पढे़-लिखे लोग और आम लोग जो कमाने के लिए बिहार से बाहर जा रहे हैं, उनकी जमीन एक समुदाय के लोग भारी संख्या में खरीद रहे हैं। विदेश से आये रुपये का निवेश जमीन-खेत-खलिहान-बगीचा खरीदने में किया जा रहा है। इलाका के ब्राह्मण, कायस्थ, भूमिहार और दूसरी जाति के लोग भी नौकरी के सिलसिले में गांव छोड़ रहे हैं। इसतरह के गांव छोड़नेवाले लोगों की जमीन पर असमाजिक गतिविधि चलानेवाले लोगों की नजर है। इस पर गौर करने की जरूरत है।
      देश भर में कहीं से अपराध कर बिहार आयें। बिहार से नेपाल और बंग्लादेश होकर बाहर निकल जायें। इसी कारण इंडियन मुजाहिदीन और दूसरे आतंकवादी संगठन मिथिला में अपनी पकड़ मजबूत बनाने में लगे हैं। आतंकी अभी पूरा उत्तर बिहार-मिथिला के इलाके पर अपना तंत्र मजबूत करने में लगा है। इसमें चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, पूर्णिया, अररिया, सहरसा आौर दूसरे बॉर्डर इलाका के लोगों को संगठन से जोड़ा जा रहा है। ये इलाके पहले से ही स्मगलिंग के लिए बदनाम है। आम समान में तस्करी में तो कमी आयी है, लेकिन अब हवाला और दूसरे तरह की तस्करी बढ़ रही है। आतंकी नये-नये इलाकों की तलाश कर रहे हैं। उसमें मिथिला का इलाका सबसे अच्छा माना जा रहा है, आतंकी गतिविधि को चलाने के लिए।
         नेपाल के रास्ते पाकिस्तान से बड़ी संख्या में आतंकवादी भारत आ रहे हैं। आतंकवादी इसी रास्ते भारत आकर आत्मसमर्पण भी कर रहे हैं। वर्ष 2010 से अब तक 300 से अधिक आतंकवादी भारत में आकर आत्मसमर्पण कर चुके हैं। इनमें कई भारतीय युवा पाकिस्तान जाकर आतंकवाद का प्रशिक्षण हासिल करके जब नियंत्रण रेखा से भारत लौटने में कामयाब नहीं हुए तो उन्होंने वहीं शादी विवाह कर लिये। अब बाल-बच्चों को साथ लेकर भारत लौट रहे हैं। पूवार्ेत्तर के कई उग्रवादी भी नेपाल के रास्ते का इस्तेमाल करते हुए पकडे़ गये हैं।
इन सभ गतिविधियों पर अंकुश लगाने के मद्देनजर 2005 से भारत-नेपाल के बीच सीमा समझौता करने की बात शुरू हुई थी। लेकिन नेपाल अपनी राजनीतिक अस्थिरता का बहाना बना कर समझौता की बात टाल दिया, जो अभी भी टला हुआ है। एसएसबी कितनी बार कह चुका है कि भारत की सीमा पर कुकुरमुत्ता की तरह उगा मदरसा खतरनाक साबित हो रहा है। मिथिला के बॉर्डर वाले इलाके में बताया जा रहा है कि पिछले 15-20 साल में मस्जिद-मदरसा की संख्या 10 गुना से अधिक बढ़ गयी है। आइएम (इंडियन मुजाहिदीन) आओर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ (इंटर सर्विस इंटेलिजेंस) इसके माध्यम से युवकों को जेहाद के लिए भड़का रहे हैं।
          कहा जा रहा है कि नेपाल और अरब देश के जरिये आइएसआइ बिहार के बार्डर इलाकों में काफी पैसा भेज रहा है। इन इलाकों में बन रही बड़ी-बड़ी मस्जिद-मदरसा के लिए अरब से पैसे आ रहे हैं। लेकिन वोट का गणित भारत सरकार को इस दिशा में पैर उठाने के लिए रोक रहा है। आतंकवादी वोट के आधारवाले इस भाव को समझते हैं, इस कारण बेरोकटोक मदरसा खोल भारत को अस्थिर करने का मंसूबा पूरा कर रहे हैं। चिंता की बात यह भी है कि नीतीश सरकार इन सब समस्याओं को केंद्र सरकार और पुलिस प्रशासन का दायित्व समझ कर मौन साधे हुई है। आवश्यकता है मिथिला के आमजन के साथ पूरा बिहार और भारत को जागरूक होने की। दहशतगर्दियों के खिलाफ प्रतिबद्ध होकर शंखनाद करने की। 

Friday 18 October 2013

आंतकीक ठौर बनैत जा रहल अछि मिथिला

प्रणव प्रियदर्शी
अपन सांस्कृतिक छटा, सांप्रदायिक सौहार्द आ सहज जीवनक स्वर साधक मिथिला कें आब आतंकक गेहुमन डसि रहल अछि। अमन-चैनक ई धरती आतंकी फसल कें लहलहाइत देखि संशय मे परि गेल अछि। मिथिलाक बैशिष्टे एकर कमजोरी बनि रहल अछि। आइ मिथिलाक भूमि आतंकी कें 'सेफ जोन' मानल जा रहल अछि। ओना बोधगया बम ब्लास्ट कें बादे सं बिहारो पहिल बेर आतंकी हमला कें केंद्र बनि गेल। ताहि मे मिथिला सं एक केर बाद एक इंडियन मुजाहिदीन (आइएम), लश्कर-ए-तैयबा सनहक आतंकवादी संगठनक आतंकवादी कें लगातार गिरफ्तारी सं ई अपन अस्तित्वक मुह जोहि रहल अछि। ई धरती आब खुफिया एजंसी आ राष्ट्रीय जांच एजेंसी कें नजरि मे गरि गेल अछि।
   पहिल बेर 2007 मे मिथिलांचलक दरभंगा जिला केर नाम आतंकी गतिविधिक कारण समक्ष आयल छल। एहि वर्ष अंडर वर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहीमक खासमखास फजलुर रहमानक गिरफ्तारी कें लेल दरभंगा कें जाले थानाक देवरा बंधौली गांव में छापामारी कएल गेल छल। मुदा ओ पुलिस कें हाथ मे नहि आयल छल। 17 अप्रैल 2010 कें बेंगलुरू कें चिन्ना स्वामी स्टेडियम मे भेल बम धमाकाक लेल दरभंगा कें बाढ़ समैला गाम कें मोहम्मद कफिल, मोहम्मद कतिल आर मोहम्मद गौहर अजीज गिरफ्तार भए चुकल अछि। गिरफ्तार आतंकी सं भेटल सूचना कें बल पर एहि गांव के दु गोट आर आतंकवादी मोहम्मद सैफ आर फसी अहमद महमूदक सउदी अरब से पिछला वर्ष गिरफ्तारी भेल छल। इएह साल 21 जनवरी 2013 कें भटकलक खासमखास मोहम्मद दानिश कें दरभंगे जिला कें लहेरियासराय थाना के चकजोहरा गाम सं जांच एजेंसी गिरफ्तार कयने छल। अहुठाम एकरा रहैक लेल भटकले बंदोबस्त केने छल।
  एहि तरहें छोट-पैघ स्तर पर ई क्रम जारि अछि। एहि क्रम मे पिछला महीना 29 अगस्त कें नेपाल सं लागल बिहारक रक्सौल शहर सं इंडियन मुजाहिदीन सरगना वा सह संस्थापक यासीन भटकल आ ओकर करीबी असदुल्ला अख्तर उर्फ हड्डीक गिरफ्तारी भेल। ई बिहार पुलिस आ एनआइए के सामूहिक सहयोग सं भेल। शेष आतंकवादीक गिरफ्तारी लेल जांच एजेंसी लगातार अभियान चला रहल अछि। बिहार पुलिस कें कहने छै जे दुनू आतंकवादी अपन मिशन कें अंजाम देबाक योजना पे बातचीतक लेल एतय आयल छल। भटकल देश कें 12 सभ सं अधिक वांछित आतंकवादी कें सूची मे शामिल अछि। ओकरा पकड़ए मे खुफिया एजेंसी कें छह महीना कें समय लागल।
    हैदराबाद मे एहि साल फरवरी मे भेल बम धमाका मे ओकर हाथ हेबोक बाद सं पूरा तंत्र ओकर गिरफ्तारी मे जुटि गेल छल। आओर, ओ अपन पहिचान छुपा-छुपा कें बिहारक गाम सभक अपन आसरा बनबैत छल। कहल जा रहल अछि जे भटकलक गिरफ्तारी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहीम आ हाफिज सईद कें करीबी आओर लश्कर-ए-तैयबा कें बम एक्सपर्ट आतंकवादी टुंडा कें निशानदेही पर भेल। टुंडा कें गिरफ्तारी अगस्त मे भेल। 70 वर्षीय अब्दुल करीम टुंडा कें भारत-नेपाल सीमा पर वनबसा (महेंद्रनगर, उत्तराखंड) सं दिल्ली पुलिस गिरफ्तार कएलक। 26 नवंबर के चर्चित मुंबई आतंकी हमलाक बाद भारत पाकिस्तानक जे 20 आतंकवादी कें नामक सूची देलक ओहि मे टुंडाक नाम सभ सं ऊपर छल। टुंडाक गिरफ्तारीक एकहि सप्ताह बाद 24 अगस्त कें बिहारक कटिहार जिलाक कदवा थाना क्षेत्रक सिंगलपुर गांव सं पुलिस टुंडा कें सहयोगी मोहम्मद बशीर कें गिरफ्तार कएलक।
  कर्नाटक कें भटकल गामक रहनिहार यासीन कें सासुर समस्तीपुर अछि। ओकर लाभ ओकरा सदिखन अपन काज कें आगा बढ़यबा मे करए छल। गिरफ्तारीक बाद एनआइए ओकरा पूछताछक लेल दरभंगो लए गेल छल। कड़गर सुरक्षा मे एनआइए कें टीम भटकल कें लए कें लेहरियासराय थानांतर्गत करमगंज मुहल्लाक पुस्ताकलय गेल, जतए ओ पहिने जाइत-आबैत छल। जमालचक गाम मे भटकलक घर संगे आन-आन ठाम सं सहो जानकारी जुटायल गेल। साल 2010-2012 कें बीच भटकल डॉ. इमरान के नाम सं एक गोट युनानी चिकित्सिक के रूप मे दरभंगा मे रहैत छल। एहि क्रम मे नवतुरिया सभ के बहका कें अपन संगठनक सदस्य बनबैत छल। एहि साल 21 जनवरी कें भटकलक करीबी मोहम्मद दानिश के सेहो दरभंगाक लेहरियासराय थाना के चकजोहरा से जांच एजेंसी गिरफ्तार केने छल।
  ई सभ आतंकवादी गतिविधिक आहटक मूल कारण अछि भारत-नेपालक खुलल सीमा। उत्तराखंड सं बिहार तक नेपालक संग भारतक खुलल सीमा अछि आ दुनू देशक मध्य एहि सीमा सं बिना अवरोध आवागमन भए रहल अछि। भारत-पाकिस्तान सीमा पें करगर पहरा अछि। एहि कारण पाकिस्तानी आतंकवादी अपन मंसूबा कें पूरा करय लेल बेधड़क एहि सीमा के इस्तेमाल करि रहल अछि। सैकड़ो किलोमीटर नमहर एहि सीमा पर प्रांतीय पुलिस आ सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के जवान तैनात अछि, जकरा पर सख्ती नहि करैक दबाव अछि। धर्मावलंबी कें प्रति भारत मे सदि काल सं उदारता कें भाव अछि, जकर लाभ आतंकवादी कें भेटैत अछि।
सुनबा मे आयल अछि जे बिहारक बॉर्डर इलाका के पढ़ल-लिखल लोक सभ आओर आम लोक जे कमाए-खाए लेल बिहार सं बाहर जा रहल छथि। हुनकर जमीन खास समुदाय के लोक भारी संख्या मे खरीद रहल अछि। विदेश सं आएल पाएक निवेश जमीन-खेत-खलिहान-गाछी मे भ' रहल अछि। एहि इलाका के ब्राह्मण, कायस्थ, भूमिहार आ दोसर जातिक लोको सभ नौकरी के सिलसिला मे गाम छोडि़ रहल छथि। एहन गाम छोड़य वाला लोक सभ के जमीन पर असामाजिक गतिविधि चलाबय वाला लोक के नजर अछि। ओ जमीनजथा खरीद सेहो रहल अछि। एहि पर ध्यान देब आवश्यक अछि।
    देश भरि मे कतहुं आतंकी वारदात कए आतंकी बिहार आबि जाइत अछि। किएक त' बिहार सं नेपाल आओर बांग्लादेश भ' बाहर निकलय लेल नीक रहैत छै। एहि लेल इंडियन मुजाहिदीन आओर दोसर आतंकी संगठन मिथिला मे अपन पकड़ मजबूत बना रहल अछि। आतंकी सभ एखन पूरा उत्तर बिहार-मिथिलाक इलाका पर अपन तंत्र मजबूत करय पर लागल अछि। एहि मे चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, पूर्णिया, अररिया, सहरसा आओर दोसर बॉर्डर इलाका मे संगठन सं लोक सभ कें जोडि़ रहल अछि। ई इलाका ओहिना पहिने सं स्मगलिंगक लेल बदनाम रहल अछि। आम सामानक तस्करी मे ओना तह्ण कमी आएल अछि। मुदा आब हवाला आओर दोसर तरहक तस्करी बढि़ रहल अछि। आतंकी सभ नव-नव इलाका कें तलाश करि रहल अछि। ओहि हिसाब सं मिथिलाक ई इलाका सभ सं नीक मानल जा रहल अछि आतंकी गतिविधि के चलाबय लेल।
   नेपालक रस्ते पाकिस्तान सं ढेरे आतंकवादी भारत आबि रहल अछि। आतंकवाही एहि रस्ते भारत आबि के आत्मसमर्पण कए रहल अछि। साल 2010 सं अखन तक 300 सं बेसी आतंकवादी भारत आबि कें आत्मसर्पण कए चुकल अछि। एहि मे कतेक भारतक नवतुरिया पाकिस्तान जा कें आतंकवादक प्रशिक्षण लेला कें बाद जखन नियंत्रण रेखा सं भारत लौटबा मे कामयाब नहि भेल त' ओहि ठाम बियाह करि लेलेक। आब बाल-बच्चा सने भारत लौटि रहल अछि। पूर्वोत्तर के कतेक उग्रवादी सभ नेपालक रस्ताक उपयोग करैत पकड़ल गेल अछि।
   एहि सभ गतिविधि पर अंकुश लगाबय लेल 2005 सं भारत-नेपालक मध्य सीमा समझौता करैक बात शुरू भेल छल। मुदा नेपाल अपन राजनीतिक अस्थिरता कें बहाना बनाए समझौताक बात टालि देलक, जे एखनो लटकल अछि। एसएसबी कतेक बेर कहि चुकल अछि भारतक लेल नेपाल सीमा पर कुकुरमुत्ता जेना उगल मदरसा खतरनाक साबित भए रहल अछि। मिथिलाक बॉर्डर इलाका मे बताएल जा रहल अछि जे पिछला 15-20 साल मे मस्जिद-मदरसा के संख्या 10 गुना सं बेसि बढि़ गेल अछि। आइएम (इंडियन मुजाहिदीन) आओर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ (इंटर सर्विस इंटेलिजेंस) एकर मार्फत युवक सभ के जेहाद लेल भड़का रहल अछि।
   कहल त' इहो जे रहल अछि जे नेपाल आओर अरब देशक मार्फत आइएसआइ बिहार कें बार्डर इलाका मे काफी पैसा भेज रहल अछि। एहि इलाका मे बनि रहल बड़का-बड़का मस्जिद-मदरसा कें लेल अरब से पाई आबि रहल अछि। मुदा वोटक गणित भारत सरकार कें एहि दिशा मे पएर  उठाब' लेल रोकि रहल अछि। आतंकवादी वोटक आधारवला एहि भाव कें बुझैत अछि। ताहि कारण बेरोकटोक मदरसा खोलि भारत कें अस्थिर करैक मंसूबा पूरा कए रहल अछि। चिंताक गप इहो अछि जे नीतीश सरकार एहि सब अजगुतक संबंध में केंद्र सरकार आ पुलिस प्रशासनक दायित्व बुझैत मौन साधने अछि। आवश्यकता अछि जे मिथिलाक आमजन संगे पूरा बिहार आ भारत कें जागरूक हेबाक। दहशतगर्दी कें खिलाफ प्रतिबद्ध भए शंखनाद करै कें। 

एहि नव पीढ़ीक भविष्य कें सम्हारू

विषाक्त पीढ़ीक कुकृत्य भोगक लेल विवश अछि नेनपन

प्रणव प्रियदर्शी 
नेना सड़क पर नहि उतैर सकैत अछि। नेना स्वाद नहि पहिचान सकैत अछि। नेना सभ सं लडि़ नहि सकैत अछि। नेना प्रपंच नहि बुझि सकैत अछि। कि इएह कारण थिक 19 जुलाई कें सारण जिलाक दुर्घटना कें। जाहि मे 23 गोट नेना सभक मृत्यु भ' गेल। एहि घटना कें आरोपी प्रधानाध्यापिका मीना कुमारी कें गिरफ्तारी भए चुकल अछि। हुनक पति सेहो सरेंडर कए देलनि। आगुक कार्रवाई प्रशासनिक स्तर पर भए रहल छै। फांरेंसिक जांच रिपोर्ट में एहि बातक खुलासा भए गेल अछि जे स्कूलक ओहि दिनक मध्याहन  भोजन मे जरूरत सं अधिक कीटनाशक मिलाओल गेल छल। घटनाक 58 दिन बाद 16 सितंबर कें उ.म.वि. गंडामनक नेना सभ कें बहुत विश्वास मे लेलाक बाद एमडीएम कें स्वाद फेर सं चखलक। एहि बीच एक प्रश्न सदिखन मन मे उठैत रहल जे गंडामन गाम सं ल' क' पीएमसीएच तक बहल नोर आ हाहाकारक हिसाब के दए सकैत अछि। प्रश्न उठैत अछि एहि तरहक दानवीय कुकृत्य जाहि देश-समाज मे भए रहल हो कि ओहि देश-समाज कें मनुखक देश-समाज कहल जाए सकैत अछि।
       सभ सं आश्चर्यक बात ई छल जे एहि घटनाक समयए सं सियासत शुरू भए गल छल। ओ समय छल सोगाएल परिवार कें सांत्वना आ सहानुभूति देवाक। बीमार नेना सभ कें सही उपचार करबाक। राज्य मे भेल एहि दुर्घटनाक मंथन करबाक। मुदा चट्टान सभ पर पानि नहि ठहरैत छै। सियासत कें सूरमाक हृदय सेहो चट्टान बनि गेल अछि। ओकरा सभ कें अपन राजनीति चमकेबाक एहि सं नीक मौका आब कहिया भेटि सकैत छलै। घटनाक दोसरे दिन बंदी कें एलान कए देल गेल। ताहि मे पुलिसक चारिटा बाहनो कें जरा देल गेल। आरोप-प्रत्यारोपक खेल शुरू भेल। माहौलक इ मखौल घटना कें अलग रूप गढि़ देलक। निश्चय, एहि तरहक कारगुजारी संवेदनहीन आ क्रूर राजनीति केर परिचायक अछि।
        वाहन जरेबाक आरोप मे जकरा सभ पर प्राथमिकी दर्ज भेल छल, ओहि मे एकटा गंडामनक व्यक्ति सेहो छला। ग्रामीण सभ कहथि जे गांव कें लोक सभ तें एहि हादसा सं अपने दुखी छल। स्थानीय लोक मे सं कियो वाहन नहि जरेलक। बाहर कें शरारती तत्व राजनीतिक साजिश कें तहत एहि घटनाक अंजाम देलक। कोनो एक दल कें नेता कोनो दोसर दलक नेता पर एहि तरहक आरोप लगाबे त' ओकरा अनदेखा क' देल जा सकैछ। मुदा जखन शोक संतप्त ग्रामीण एहन गप कहथि त' बात विचारणीय भए जाइत छै।
        एहि घटना कें बाद लगातार गया, मधुबनी आ आन-आन ठाम सं सेहो जहर मिलबैक बारदात सामने आयल। गया मे अफबाहक पसाही पसारनाहर मे सं दू गोट भाजपा विधायक कें सहो गिरफ्तार कयल गेल। मुदा सभ ठाम अफबाह बला गप नहि छलै। एहि घटनाक एक सप्ताहो नहि बीतल छल की गोपालगंजक फुलवरिया प्रखंड कें सरकारी विद्यालयक चापाकल में जहरीला पदार्थ मिला देल गेल। गनीमत ई छलै जे एकटा छात्र जहन पानि पिबी लए गेल त' पानि कें रंग कारि देख एकर सूचना प्राचार्य कें देलक। विद्यालयक परिसर मे गड़ाओल तीनहुटा चापाकल कें सील कए देल गेल। पानि कें जांच करेबाक लेल लेबोरेटरी पठाओल गेल। जांच रिपोर्ट आबै तक अधिकारी सभ एडीएम बनाबए पर रोक लगा देलक। एहने घटना सीवान जिलाक दरैंदा में सेहो भेल। बांका मे सेहो एहन घटना भेल।
         घटना एहि ठाम नहि रुकल। सीवान मे हरदियां प्रखण्डक मिडिल स्कूल मे कीटनाशक मिलाबय गेल युवक कें लोक सभ खूब पीटलक। बाद में ओकरा पुलिस कें सौंपि देल गेल। लोक आक्रोश मे ओकर बाइक जरा देलक। ओकर बाद स्कूलो कें आगि लगा देल गेल। ओकरा बाइक सं कीटनाशक बोतल सेहो भेटल। ओना फॉरेसिंक विभाग मे जिला सभ सं एहि घटनाक मादे जे नमूना भेजल गेल छल ओहि मे कीटनाशक हेवाक पुख्ता प्रमाण नहि भेटल। मुदा एहि बीच राज्य भरक नेना डेराअल-सकुचायल जरूर रहल। स्कूली बच्चा कें भोजन-पानि दोनों पर ग्रहण लागि गेल छल।
         पहिलो मध्याहन भोजनक छिटपुट घटना सामने अबै छल। मुदा ऐते बच्चाक मृत्यु नहि भेल छल। ओकर बाद ओछ राजनीतिक तांडव, तकर बाद शृंखलाबद्ध घटनाक झड़ी नहि लागल छल। साजिशक शिकार बच्चा कें बनाओल जेबाक निकृष्टता एक गोट नव तरहक मानसिक विद्रूपताक दिस इंगित करैत अछि। ऐहन घटना साफ-साफ इंगित कए रहल अछि जे हमर समाज आब बच्चोक प्रति संवेदनहीन भ' गेल अछि।
         सुरक्षा कें मादे एहि घटना मे मारल गेल नेना सभक शव विद्यालय के चारूतरफ दफनाओल गेल। गंडामनक ग्रामीण कहैत छला जे ई भविष्यक संकेत होयत जे केहन अमानवीय घटना सं नेना सभहक प्राण-पखेरू उड़ल छल। एहि स्थान पर स्मारक बनत, ताकि लोक सभ कें स्मरण रहनि कि एहिठम एक बेर नृशंस घटना भेल छल। ई स्मरण दियाबैत रहत जे फेर एहि तरहक घटना दोबारा नहि हुए। तैयो एतबा काफी नहि अछि। हमरा सभ कें ई घटना सतर्कता केर संग ई सोचबाक लेल सेहो विवश कए रहल अछि जे कोना अपन नव पीढ़ी के सुरक्षित भविष्य देल जाए? 

Wednesday 9 October 2013

गांव से गायब होती कीर्तन मंडली

प्रणव प्रियदर्शी
घुप्प अंधेरा, स्तब्ध रात, डग भर की दूरी भी नहीं सूझती थी। कहीं दूर से आती कीर्तन की मद्धिम आवाज कोनों में उतरती थी। मन को यह भरोसा होता था कि कोई है...है कोई ... आसपास उत्साह की आंच सुलगाने के लिए। गांवों की वह सांस्कृतिक परिदृश्य ही उसकी पहचान थी। लेकिन अब वहां कीर्तन मंडली ही नहीं है तो भला कीर्तन कहां से होगा? गांव-घर में जब भी कोई धार्मिक अनुष्ठान होता था, कीर्तन मंडली भक्ति की ज्योत जगाने वहां पहुंच जाती थी। लोग उन्हें कुछ ले-देकर कृतार्थ का अनुभव करते थे। लेकिन अब न तो वैसे लोग रहे और न वैसी प्रांजल अनुभूति की दमक। यही कारण है कि कीर्तन मंडली अब विलुप्ति के कगार पर पहुंच गयी है। बदलती मानसिकता की तपिश के बीच उसकी जगह बैंड पार्टियों का कनफोड़ू संगीत ने ले लिया है।
        कीर्तन मंडलियों के गायब होने का एक कारण रोजगार के दबाव में गांव से शहर की तरफ पलायन भी है। कीर्तन मंडली में कम-से कम चार-पांच लोग अवश्य सम्मिलित होते थे। इतने लोगों का होना जरूरी था। बाकी साथ देनेवाले अन्य लोग तो आयोजन के दौरान अपने-आप मिल जाते थे। कीर्तन मंडली से जुड़े लोग गांव-घर में किसी-न-किसी छोटे-बड़े अन्य कामों से भी जुड़े होते थे। फुर्सत के पल में कीर्तन का अलख जगा आते थे। अब पलायन के कारण गांवों में एक साथ चार लोगों का रहना भी गंवारा नहीं है। एक उपस्थित रहता है तो दूसरा अनुपस्थित। ऐसे में कीर्तन का होना असंभव हो जाता है।
         ऐसा नहीं है कि कीर्तन मंडली में संगीत और आध्यात्म के बहुत बड़े जानकार लोग होते थे। बस काम भर अभ्यास के सहारे भक्ति के स्वर साध लेते थे। उनका गंवई अंदाज और  ज्ञान गुमान रहित सहजता ही बरबस मन को सम्मोहित करती थी। गांव में आकर शहर के बसने से धीरे-धीरे कीर्तन मंडली की तरह हमारी कई प्रमुख सास्कृतिक परंपराएं भी विलुप्त होती जा रही हैं। समय चक्र से बच कर उन्हें संवेदनशीलता के साथ सहेजने की जरूरत है। 

Tuesday 1 October 2013

मजधार है, भंवर है और दूर है किनारा

प्रणव प्रियदर्शी
सीबीआइ की विशेष अदालत ने सोमवार को राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्र समेत सभी 45 आरोपियों को दोषी करार दिया। यह चारा घोटाला से जुड़े सबसे बड़ा मामला था। अपने चुटीले अंदाज से वातावरण को खुशनुमा बनानेवाले लालू यादव इसबार रांची आगमन के समय से ही धीर-गंभीर थे। इस धीरता-गंभीरता में निराशा से उपजा सन्नाटा था। यह कोर्ट के फैसले के बाद मुखर हो उठा। लालू यादव ने जज से कहा कि जब आपने दोषी ठहरा ही दिया है तो सजा पर सुनवाई भी अभी ही कर लीजिए। हालांकि, जज ने लालू की मांग को खारिज करते हुए उन्हें हिरासत में लिये जाने का आदेश दे दिया। सजा तीन अक्टूर को सुनायी जायेगी। इस मामले में लालू यादव को तीन से सात साल तक की सजा हो सकती है। फैसले के बाद लालू यादव को सीधे बिरसा मुंडा जेल भेज दिया गया। 
             चारा घोटाले में दोषी करार दिये जाने के साथ ही लालू का राजनीतिक भविष्य खत्म होने की अटकलें शुरू हो गयी हैं। सुप्रीम कोर्ट के हाल में आये फैसले के मद्देनजर राजद सुप्रीमो के सामने लोकसभा सदस्य के रूप में अयोग्य ठहराये जाने का तत्काल खतरा पैदा हो गया है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि अगर किसी सांसद या विधायक को किसी अदालत द्वारा दो साल या इससे अधिक की सजावाले किसी अपराध में दोषी ठहराया जाता है, तो वह तत्काल अयोग्य माना जायेगा। 
             संभावना इस बात की भी है कि वह अगला लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ पायेंंगे। लालू यादव की निराशा इन्हीं सब संभावनाओं के मद्देनजर ही होगी। और इन सारी संभावनाओं के पीछे है 27 सितंबर को राहुल गांधी का वह बयान, जिसमें उन्होंने कहा था कि दागी नेताओं से संबंधित सरकार द्वारा लाया गया अध्यादेश पूरी तरह बकवास है और इसे फाड़ कर फेंक देना चाहिए। यदि राहुल ने पिछले हफ्ते दोषी सांसदों को बचानेवाले अध्यादेश के खिलाफ अपनी राय नहीं दी होती तो अब तक अध्यादेश पर दस्तखत हो गये होते और उनकी सीट बच गयी होती। मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा ने राहुल के कारनामे के एक दिन पहले ही राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से मुलाकात कर इस अध्यादेश पर हस्ताक्षर नहीं करने का आग्रह किया था। इसके बाद राष्ट्रपति ने इस अध्यादेश के बारे में स्पष्टीकरण लेने के लिए कानून मंत्री कपिल सिब्बल और गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को तलब किया था।
             भाजपा लालू यादव को सजा मिलने से उत्साहित है। इस उत्साह का आभार उन्हें सबसे पहले राहुल गांधी को ही देना चाहिए। किसी मामले में एक ही राज्य के दो मुख्यमंत्रियों के एक साथ जेल जाने से भारतीय राजनीति   में शुद्धिकरण की शुरुआत मानी जा रही है। इसकी भी बलाइयां राहुल गांधी को ही मिलनी चाहिए। दरअसल शुद्धिकरण और शुचिता की शुरुआत निर्द्वन्द्व मन:स्थिति से ही हो सकती है। ऐसी ही मन:स्थिति और निर्विघ्न परिस्थिति के बीच राहुल गांधी ने दागी अध्यादेश के प्रति अपनी निजी राय व्यक्त की थी। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी बात कहने के लिए जो परिस्थिति चुनी, वह भी उस बात को कहने के लिए पूरी तरह उपयुक्त थी, वरना असर गहराई तक नहीं जाता। 
         राहुल गांधी ने प्रेस क्लब को उस समय चुना, जब कांग्रेस के संचार विभाग के प्रभारी अजय माकन इस क्लब में मीडिया को संबोधित कर रहे थे। इसी बीच राहुल ने खुद वहां आने का निर्णय लिया और मंच पर आते ही आनन-फानन में अध्यादेश के बारे में अपनी राय जाहिर कर सबको अवाक कर दिया। राहुल ने सबको सहज करने के लिए पहले माइक उठाते ही कहा, मैं कोई प्रेस कांफ्रेंस के लिए नहीं आया हूं। मैंने माकन जी को फोन मिलाया तो उन्होंने बताया कि आप उनसे अध्यादेश के बारे में सवाल पूछ रहे हैं। मैंने उनसे पूछा कि क्या लाइन ले रहे हो। उन्होंने मुझे पार्टी की लाइन बतायी। इसके बाद मैंने उनसे कहा कि मैं खुद ही आ रहा हूं और मैं अचानक यहां चला आया। राहुल गांधी ने कहा, अध्यादेश के बारे में मेरी निजी राय यह है कि यह पूरी तरह बकवास है और इसे फाड़ कर फेंक देना चाहिए। इसके पक्ष में तर्क यह दिया जाता है कि राजनीतिक कारणों से किया जा रहा है। उन्होंने कहा, हर पार्टी यही करती है, कांग्रेस यही करती है, भाजपा यही करती है, जनता दल, समाजवादी पार्टी सब यही करती हैं। मेरा कहना है कि मेरी पार्टी और बाकी सभी पार्टियों को इस तरह के समझौते नहीं कर इसतरह का बेहूदा निर्णय लेना बंद करना चाहिए।
          ऐसा कारनामा सिर्फ नायक जैसे फिल्म का नायक ही कर सकता है। असल जिंदगी में ऐसा इसलिए हुआ कि राहुल गांधी के भीतर सियासी दांव-पेंच के गुण नहीं आये हैं। वह अपनी कमजोरी भी समझते हैं और मजबूरी भी। राजनीति के तंग माहौल में वह अभी तक अपने-आप को समायोजित नहीं कर पाये हैं। उनके भीतर एक बेचैनी, एक छटपटाहट है; जो उनके युवा होने की प्रमाणिकता गढ़ती है। राहुल सियासत की दम तोड़ती अजान पर खुद को कुर्बान नहीं करना चाहते। लेकिन मजबूरियां हैं कि उनके पंख पकड़ लेते हैं। हालांकि भाजपा ने राहुल के इस कारनामे को नौटंकी करार दिया है, लेकिन सियासत के खिलाड़ी इसतरह की निर्दोष नौटंकी नहीं कर सकते। और यह कोई पहला मौका नहीं है कि राहुल के भीतर का मर्म जगा है। 
         याद कीजिए इसी वर्ष रविवार, 20 जनवरी का दिन जब राहुल ने सत्ता को जहर की संज्ञा दी थी। राहुल ने कहा था - आज सुबह मैं चार बजे ही उठ गया और बालकनी में गया। सोचा कि मेरे कंधे पर अब बड़ी जिम्मेदारी है। अंधेरा था, ठंड थी। मैंने सोचा कि आज मैं वह नहीं कहूंगा, जो लोग सुनना चाहते हैं। आज मैं वह कहूंगा जो मैं महसूस करता हूं। राहुल बोले, पिछली रात मेरी मां मेरे पास आयी और रो पड़ी, क्योंकि वो जानती हैं कि सत्ता जहर की तरह होती है। सत्ता क्या करती है। इसलिए हमें शक्ति का इस्तेमाल लोगों को सबल बनाने के लिए करना है। देश को राहुल जैसी ही मन:स्थिति और निष्कलंक काया रखनेवाले युवा नेताओं की जरूरत है।
ऐसी चर्चाएं इसलिए भी कि चर्चा है कि लालू के जेल जाने की स्थिति में उनकी पार्टी बिखर जायेगी। लेकिन लालू की दूरदर्शी सोच को पकड़ पाना सबके बस की बात नहीं। लालू जानते थे कि ऐसी स्थिति बन सकती है, इसलिए पहले ही वह अपने दोनों बेटे तेजस्वी और तेज प्रताप को राजनीति के मैदान में उताड़ चुके हैं। खुद राजद प्रमुख बहुत पहले ही यह संकेत दे चुके हैं कि उनकी गैरमौजूदगी में उनके बेटे पार्टी का नेतृत्व करेंगे। ये अलग बात है कि उनके पास कच्ची उम्र है और अनुभव की कमी है। राजनीति की पिच पर अपने पिता जैसा खिलाड़ी भले बन नहीं सकें, लेकिन राहुल गांधी का आदर्श तो है।