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Wednesday 18 December 2013

बयान बहादुरी के बदले काम और भी हैं...

प्रणव प्रियदर्शी
रांची : झारखंड सरकार में कांग्रेस के मंत्री बयान बहादुर हैं. ये बात पूरी यकीन के साथ कहा जा सकता है. फिर भी किसकी मजाल कि इन्हें कोई किसी और काम की नसीहत दे. जब कांग्रेस अलाकमान की मर्जी को भी यहां शिकस्त दे दिया जाता है तो किसी और के क्या कहने! प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत और झारखंड प्रभारी बीके हरिप्रसाद की लाख मिन्नतें, आरजू और आदेश के बावजूद स्थिति जस की तस है. रूठने-मनाने का मुहूर्त बार-बार निकल आता है और जनाकांक्षाओं का सूरज छिप जाता है. कभी गधे को गुलकंद वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है तो कभी थोथा चना, बाजे घना का राग उभर अता है.
अभी झारखंड की सियासत में विभागीय अफसरों को आड़े हाथों लेने का नया प्रचलन शुरू हुआ है। भला इसमें विवादों से चोली दामन का साथ रखनेवाली शिक्षा मंत्री गीताश्री भी पीछे क्यों रहे! मियां की जूती, मियां के सिर। उन्होंने वरिष्ठ आइएएस आॅफिसर व योजना विकास सचिव डीके तिवारी को चपेटे में ले लिया. वह भी अनुसंधान और समीक्षा की पहलुओं में गोता लगाये बिना. उन्होंने सबसे पहले तो उनपर भाजपा के करीबी होने का आरोप लगाया. वहीं, दूसरी तरफ पारा शिक्षकों की फाइल पर कुंडली मार कर बैठने की बात कही. पहला आरोप उनकी व्यक्तिगत संकीर्णता का परिचायक है तो दूसरा आरोप उनकी पीडि़त मानसिकता का. मीडिया रिपोर्टों से खुलासा भी हो चुका है कि पारा शिक्षकों के मानदेय वृद्धि से संबंधित फाइल 29 अक्टूबर से ही मुख्यमंत्री सचिवालय में पड़ी है. उनके इस कारनामे से फिर कांग्रेस के माथे पर लकीर उभर आयी है. पार्टी कहती है कि कांग्रेस का एजेंडा लागू करने के लिए सरकार पर दबाव बनायें. लेकिन मंत्रियों का सुर्खियों में बने रहने का एजेंडा सब मट्यामेट कर देता है. कांग्रेस के मंत्रियों के फसाने और भी हैं. ग्रामीण विकास मंत्री ददई दुबे विभागीय सचिव के बदले जाने बिफर पड़ते हैं. मन्नान मल्लिक की कौन कहे वे तो कैबिनेट बंटवारे पर ही तन जाते हैं और मुख्यमंत्री को ही अलोचना के घेरे में ले लेते हैं. पश्ुपालन मंत्री योगेंद्र साव ताल ठोंक कर आईजी आरके मल्लिक और रांची एसपी साकेत सिंह के तबादले का श्रेय लेते हैं. 58 हजार का पेट्रोल जबरन भरवा कर होठ पसाड़ कर बेगुनाही का बयान दे देते हैं. डीएओ (जिला कृषि पदाधिकारी) के पास पेट्रोल पंप का नोटिस आता है और वह माथा पकड़ लेते हैं. पार्टी पीछे-पीछे अती है. जांच-पड़ताल की बात करती है. कार्रवाई का भरोसा देती है. दिन बीतते हैं और सभी सिरहाने सिमट जाते हैं.
इन्हें विधानसभा अध्यक्ष से सीखनी चाहिए कि उन्होंने प्रोटोकॉल के मामले पर अपनी सुरक्षा लौटायी. फिर आलाअधिकारियों के साथ बैठक की. उसके बाद बयान दिया. अपनी नाराजगी को तर्कसंगत पहलुओं से हल करने के बाद कहा कि सिर्फ सीएम की ही सुनते हैं अफसर. उन्होंने अधिकारियों की बातें भी स्वीकारी कि अध्यक्ष का प्रोटोकॉल यहां तय नहीं है. उन्होंने कहा कि जब प्रोटोकॉल ही तय नहीं है तो इस पर क्या कहना! उन्होंने जिलों में प्रोटोकॉल के उल्लंघन का मामला उठाया था. सुरक्षा को लेकर सवाल नहीं उठाया था. अब विस अध्यक्ष ने बिहार विधानसभा को पत्र लिख कर सुरक्षा के संदर्भ में जानकारी मांगी है.
कांग्रेस के मंत्रियों से लेकर पार्टी तक को यह समझना होगा कि अब फाकामस्ती से काम नहीं चलेगा. जनता का मिजाज बदल चुका है. उसे नित नूतन बयानों की फितरत से नहीं फुसलाया जा सकता. अपना ठीकरा दूसरे के सिर फोड़ने से बात नहीं बनेगी. नहीं तो झारखंड में भी कहीं वही हश्र न हो जाये जो मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में हुआ. आगे लोकसभा की रणभेड़ी बजनेवाली है. झारखंड में अब आम अदमी पार्टी भी अपनी भुजाएं उठा रही है. नये-नये कार्यकर्ता जुड़ कर इसकी सबलता सुदृढ़ कर रहे हैं. इसलिए झारखंड की सियासत को आधा तीतर आधा बटेर जैसी स्थिति से उबड़ कर अपनी करनी पार उतरनी जैसे हर्फ गढ़ने होंगे.