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Wednesday 12 November 2014

शॉर्टकट बोले तो...

नयी पीढ़ी का भाषाई भविष्य

प्रणव प्रियदर्शी
समय की रफ्तार आज बहुत तेज हो गयी है. सभी जल्दी में हैं. आगे...और आगे...कदम बढ़ते जा रहे हैं लगातार. मंजिल चाहे जहां मिले, रास्ते पर ठहरना किसी को गवारा नहीं. इसकी गति के साथ कदमताल करने के लिए हर जगह शॉर्टकट अपनाया जा रहा है. कपड़े से लेकर अन्य जीवन व्यवहार में भी. ऐसे में भला भाषा पीछे क्यों रहे, जो हमारी अभव्यक्ति का सहज माध्यम है. कैंपस में स्टूडेंट्स के बीच कोड लैंग्वेज, एब्रीवेशन या स्लैंग की लंबी परंपरा रही है. लेकिन अब कैंपस के बाहर भी युथ फैशन के तौर पर व्यापक रूप से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. इंटरनेट और मोबाइल फोन का बढ़ता चलन और जीवन शैली में गैजेट्स के घुलमिल जाने से जैसे यह इनकी प्रतिबद्धता बन चुकी है.

कुछ भाषाई बानगी तो देखिए...
अभी सो के उठे हो, क्या तुम्हें कैंपिसंग (कैंपस इंटरव्यू) में नहीं जाना है? बीटीडब्ल्यू (बाय द वे) तुम जानती ही होगी, सारा कहां गयी है? उसका रेपो (रेपुटेशन) कॉलेज में बहुत खराब है. बंटी का भी वर्क एक्स (वर्क एक्सपिरयेंस) बहुत बढ़िया नहीं है. यार, आजकल मैं अपने पिग (परमानेंट इल्लिगल गेस्ट) से परेशान हूं. फाई (फॉर योर इनफॉरमेशन) आज मैं कॉलेज नहीं आऊंगा. जरा, पीडी (पेन ड्राइव ) देना तो. इस बार एफबी (फेस बुक) पर तुम्हारा डीपी (प्रोफाइल पीक्चर) ठीक नहीं लगा. चलो, कोई पिक (पिक्चर) देखने चलते हैं, उसके बाद ओडी (आॅडिटोरियम) में बैठ कर मस्ती करेंगे. हमारे कुछ हैप (कॉन्फिडेंट सीनियर स्टूडेंट) वैसे तो ड्यूट अल्टीमेट (बहुत स्मार्ट) हैं, लेकिन कभी-कभी वे हमें शंटिंग (अनदेखा) कर जाते हैं. सीपी(क्लास पार्टिसिपेशन), सीएएम (कांट एग्री मोर), ओटीटी (ओवर दी टॉप), डीपी (डेसपरट पार्टिसिपेशन), डीएल (डायरेक्ट लॉच) जैसे एब्रीवेटिव वर्ड्स का चलन युथ में तेजी से बढ़ रहा है.

नामकरण भी करते हैं छात्र :
कैंपस में एक ट्रेंड यह भी है कि स्टूडेंट्स कुछ खास किस्म के छात्रों की पर्सनिलिटी देख कर उसका छोटा-सा नामकरण कर देते हैं. इस संक्षिप्त नामकरण को देख कर बड़े-बड़े कवियों की कल्पना और वैचिरक चेतना मात खा जाये. टपका (बात-बात में टपक पड़नेवाला), कड़ा (अपनी बात पर अड़नेवाला), पीस (हर बात का मखौल उड़ानेवाला) तेली ग्रुप ( चापलूसों का ग्रुप), बाबा (कॉलेज छोड़ चुके छात्र नेता), फच्चास (फ्रेशर), मामा (जो जूनियर्स के साथ बड़प्पन से पेश आते हों), मार्गयू फेस (गंभीर किस्म के इंसान), एक्ट होलियर (अच्छा कर्मवाला), गीला (एक से ज्यादा लड़कियों की ओर भागनेवाला) छात्रों द्वारा बनाये गये कैंपस डक्शनरी के खास शब्द हैं, जिसे दूसरे लोग नहीं समझ सकते. हर जगह कुछ ऐसे सृजनशील ऊर्जा से लबरेज छात्र होते हैं, जो इस तरह के नये-नये शब्द गढ़ते हैं. और यह धीरे-धीरे कैंपस में सभी की जुबान पर चढ़ जाते हैं.

क्या कहते हैं सर्वेक्षण :
पीव्यू इंटरनेट एंड अमेरिकन लाइफ प्रोजेक्ट द्वारा करवाये गये एक सर्वेक्षण में यह बात निकल कर आयी कि अमेरिका के दो-तिहाई किशोर इंटरनेट स्लैंग व इमोशंस का प्रयोग अपने होमवर्क में करते हैं. शोध में यह भी माना गया कि जो बच्चे इंटरनेट का प्रयोग अधिक करते हैं, उनकी भाषा में स्लैंग शब्दों की प्रचुरता होती है. शोध में एक चौंकानेवाला तथ्य यह भी निकल कर आया कि अधिकतर बच्चे स्लैंग शब्दों का प्रयोग जानबूझ नहीं करते हैं, बल्कि वे इस कदर शॉर्ट फॉर्म में लिखने के आदि हो चुके हैं कि अपने-आप उनकी लेखनी में ये शब्द आ जाते हैं.
कुछ दिनों पहले एक शैक्षिक वेबसाइट ने भाषाओं पर स्लैंग व टेक्स्ट मैसेज के प्रभाव का सर्वेक्षण किया था. सर्वेक्षण में यह बात निकल कर आयी कि स्लैंग भाषा व टेक्स्ट मैसेज के अत्याधिक प्रयोग के चलते बच्चों के व्याकरण के ज्ञान पर प्रभाव पर रहा है. हालांकि विदेशों के मुकाबले हमारे देश में अभी यह चलन इतना अधिक नहीं बढ़ा है, फिर भी स्लैंग शब्दों व टेक्स्टिंग के बढ़ते चलन को देखते हुए इसे नयी पीढ़ी का भाषायी भविष्य कहना गलत नहीं होगा.

इंटरनेट पर सर्च करें शॉर्टफार्म :
1. नेटलिंगो डॉट कॉम, यहां आप आजकल अंगरेजी में प्रयोग होनेवाले स्लैंग शब्दों का अर्थ खोज सकते हैं. इसके अलावा आॅनलाइन व्यापार, प्रौद्योगिकी व संचार से संबंधित स्लैंग की भी यहां जानकारी है.
2. ‘द पीवीश डिक्शनरी आॅफ स्लैंग’ में ब्रिटीश अंग्रेजी में प्रयुक्त होनेवाली स्लैंग भाषा की जानकारी मिल सकती है.
3. ‘एब्रीवेशनजेड’ में आपको व्यापार, कंप्यूटिंग, चैट, विज्ञान आदि क्षेत्रों से संबंधित तीन लाख से भी अधिक शब्दों के एब्रीवेशन यानी शॉर्टफॉर्म मिल जायेंगे.
4. फॉलडॉल डॉट आॅर्ग स्लैंग की आॅनलाइन डिक्शनरी हैं.

क्या कहते हैं युथ :
गैजेट पर इस्तेमाल होनेवाली स्लैंग भाषा की वजह से युथ के लिए इंटरनेट पर सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट का उपयोग बढ़ा है. अधिक एसएमएस करने की प्रवृति में इजाफा हुआ है. इससे समय की बचत होती है. पैसे भी बचते हैं. कम समय में अधिक से अधिक बातचीत हो जाती है.
रजनीकांत

इंटरनेट स्लैंग व टेक्स्ट मैसेज में इस्तेमाल होनेवाले एब्रीवेशन दोस्तों से बात करने का आसान जरिया है। इसके लिए यह कहना सही नहीं होगा कि इससे उनके मानसिक विकास या भाषायी ज्ञान पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है. चूंकि गैंजेट पर स्लैंग भाषा का इस्तेमाल आसान हैं. इसलिए हम इसका प्रयोग अधिक करते हैं.
अंबुज

दोस्तों के बीच बातचीत में हम शॉर्टकट शब्दों का इस्तेमाल अधिक करते हैं. यह हमारी पहचान और अपनत्व का एक माध्यम बन चुका है. जिस वर्चुअल दुनिया में हम जी रहे हैं, उसकी यह मजबूरी है और हमारे लिए मस्ती एक अवसर भी. हालांकि हम अपने पैरेंट्स के साथ बातचीत में ऐसे एब्रीवेशन का इस्तेमाल नहीं करते हैं.
उत्पल

एब्रीवेटिव शब्दों का प्रयोग हम अपने दोस्तों के बीच निजी बातचीत शेयर करने के लिए ही करते हैं. इसका कैंपस या इंटेरनेट से बाहर कोई अस्तित्व नहीं होता. आॅफिशियली इसका इस्तेमाल नहीं किया जाता है. हां, हमें इतनी सतकर्ता तो बरतनी ही होगी कि इस तरह के शब्द हमारी मूल भाषा पर अपना प्रभाव नहीं छोड़े.
मयंक

Sunday 16 February 2014

वेलेंटाइन डे : मौसम ने भी पुकारा, युवाओं ने प्रेम निभाया


प्रणव प्रियदर्शी
रांची. वेलेंटाइन वीक अर्थात प्रेम को समर्पित एक पूरा सप्ताह. एक-एक को अलग-अलग अंदाज में मनाने की चुहल. और फिर अंतिम छोड़ पर वेलेंटाइन डे, यानी एहसास के किसी कोने में बची-खुची सारी कसक को संवार लेने का एक अवसर. महानगरों की संस्कृति की ओर तेजी से बढ़नेवाले रांची के युवक भला ऐसे अवसर को हाथ से कैसे फिसल जाने देते. उस पर से मौसम का आशिकाना अंदाज, फगुनाहट का आगाज और वसंत का साथ इन्हें उलफत के रंगों में रंगने को विवश कर रहा था. शुक्रवार को मौसम में अचानक हुए परिवर्तन, इन्हें प्रेम निमंत्रण लग रहा था. घर में बैठे, अपने ही धुन में खोये-अलसाये प्रीत पगा मन जब खिड़की का पर्दा उठाया, प्रकृति के अंदाजे बयां पर चौंक उठा. उन्हें लगा कि मौसम भी पुकार रहा है. अब जान हथेली पर क्यों न लेना पड़े, मिलने जाना ही पड़ेगा. झट तैयार होकर बाहर निकले. सामने हमराज को पाकर उनके मन की हसरतें और हरारतें समय पर अमिट लकीड़ खींच देना चाहती थीं. प्रेमी जोड़े एक-दूसरे के हाथों में थामे हाथ जब एक कदम बढ़ाते, सिसकती हवा पास से गुजरती और ये सिमटने को तैयार हो जाते. कदम थमते कि किसी फूलों की झुरमुट से निकल कर आयी कोई स्वप्निल सुगंध इन्हें मदहोश कर जाती. जैसे ही पीछे मुड़ कर कुछ खोजते कि फागुनी चंचलता इनके शरीर को झनझना जाता.
   भारतीय संस्कृति में भी प्रेम निमंत्रण और इसकी अभिव्यक्ति का स्थान है. लेकिन इसे किसी दिन विशेष के रूप में मनाने की परंपरा यहां नहीं रही है. यहां प्रेम के लोकरंजक नहीं, व्यक्तिपरक स्वरूप की प्रधानता है. ऐसा इसलिए कि हमारी जीवन पद्धति और पारिवारिक पृष्ठभूमि सामूहिक नैरंतर्य को साथ लेकर चलती है. परंतु, अब जबकि हम हर स्तर पर अपने चिरंतन मूल्य से ही कटते जा रहे हैं; तो हमारी जीवन शैली में वेलेंटाइन डे की प्राथमिकता आ जुड़े तो कोई आश्चर्य की बात नहीं. इस बीच जब निरंकुश बाजार भी अपना रास्ता बना कर अहसासों का आखेट करने लगे तो उसे कैसे रोका जा सकता है! प्रेम को महसूसने और उसे जीने की जो विशिष्ट संवेदना भारतीय मानस के अंदर सदियों से संजीवित है, उसके स्वरूप में कोई अंतर नहीं आया है. इसी के बल पर तो वह अपनी अंतरात्मा से अभी भी अपनी तरह हैं, भले ही कोई लाख पश्चिमी अवधारणा की दुहाई दे. भारतीय युवा वेलेंटाइन डे मना कर प्रेम को और भी किसी विशिष्ट अनुभूति से जोड़ देते हैं. हमारी जीवन संरचना में बिना वेलेंटाइन डे के भी क्षण-क्षण प्रेम ध्वनित होता है और पग-पग पर एक प्रेम कहानी मिलती है.
   भारतीय संस्कृति की दुहाई देकर वेलेंटाइन डे के विरोध के नाम पर जो कुछ किया जाता है, वह तो भारतीय चेतना को और भी आहत करनेवाला है. यहां विद्रोह भी प्रेम से किया जाता है. नवीन मूल्य स्थापित करने के लिए किया जाता है. पर मूल्य के नाम पर जिनके पास कुछ भी नहीं है, वह समूह बना कर प्रेमी जोड़े पर हमला करते हैं और अपनी करतूतों पर शर्मसार होने के बदले खुशी से झूम उठते हैं. तात्कालिक सुर्खियां उन्हें मिल जाती हैं और इसे अमूल्य निधि समझ लेते हैं. यही कारण है कि इनकी मनाही के बावजूद रांची के युवाओं ने पार्कों सहित अन्य कई जगहों पर वेलेंटाइन डे मनाया. दिक्कतें हुर्इं, सजा भी मिली, फिर भी उत्साह पर आंच नहीं आने दी.

Thursday 2 January 2014

नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन!


प्रणव प्रियदर्शी
रांची : टिक...टिक...टिक...टिक करती घड़ी की सूई. सभी की आंखें टंगी हुर्इं. जैसे-जैसे घड़ी की सूइयां आगे बढ़तीं, लोगों की धड़कनें तेज होती जातीं. नव वर्ष को नव उत्साह के साथ नये भावावेश में जीने की उम्मीदें हिलोरें मारतीं. जैसे धैर्य का एक युग, जैसे एक जंगल फड़फड़ाहट का. जैसे ही घंटा, मिनट और सेकेंड की सूइयां हमआगोश होकर 12 पर थमीं, सब्र का बांध टूटा. हवा में एक तल्खी इस राग के साथ बिखर गयी कि अब तुम आ गये हो, नहीं कर सकते और तुम्हारा इंतजार! छत के नीचे टेलिफोन और मोबाइल की अलग-अलग धुनें गूंजने लगीं. बाहर सर्द सन्नाटे को चीरती पटाखे की ध्वनि से पूरा वातावरण आह्लादित हो उठा. शहर के सारे नामचीन होटल, क्लब, बार, रेस्तरां, पार्क संगीत के सरगम पर थिरकने लगे. वाह! कितना मादक क्षण था वह! बिछोह के क्षण पर आगमन का उत्साह देखते ही बन रहा था. एक उक्ति सटीक बैठ रही थी-आधे प्याले में शराब, मगर खाली नहीं था बाकी का आधा, वह गुम हुआ मदहोशी में.
     बीते वर्ष में हमने क्या गंवाया-क्या समेटा, इस चिंतन की शालीनता शाम ढलते ही ढल गयी. बारहा, सर्द-स्याह रात में चादर में सिमट कर लोग छत पर पहुंच रहे थे. नव वर्ष की खुशी में शुमार हो इंतकाम की सारी हदें पार कर देना चाहते थे. दूसरी तरफ घर में बैठे लोग टीवी के माध्यम से विभिन्न कार्यक्रमों का लुत्फ उठा रहे थे. वहीं, कुछ सुबह के इंतजार में पलकें बिछाए हुए थे. पिकनिक स्पॉट पर जाने के लिए तरह-तरह की योजनाएं बन रही थीं. माहौल की सरगोशी शब्दश: इस बात को बयां कर रही थी कि मनुष्य कहीं नहीं जाता, हर चीज मनुष्य तक आती है, जैसे कल, जैसे नव वर्ष.
     इन सारे मंजर से बेफिक्र हो अनागत-आगत के क्षण पर ठहर कर कोई विरही मन कह रहा था कि कोई दस्तक दे रहा है दरवाजे पर. कितना निराशाजनक है यह. कि तुम नहीं, नया साल आया है. समय की नब्ज पर हाथ रखनेवाले कुछ लोग नव वर्ष से ही संवाद करने में लगे थे. वे कह रहे थे कि अपराधियों की खूनी वारदातें, आततायियों के काले कारनामे, फितरतियों की फिराकपरस्ती और ऐयासों के कायर कहकहे. यदि तुम्हारे पास इतना ही कुछ बचा है; हमारे उत्साह को समय का सौगात देने के लिए, तो तेरे आने-जाने का क्या अर्थ रह जाता है? किस उत्कर्ष की कामना लिये हम तुम्हारा स्वागत करें. और किस संभावना के लिए करें तुमारा अभिनंदन! इसलिए तो कहता हूृं; इतिहास के इंसाफ से पहले कुछ कर सकें हम, कुछ कर सको तुम, तो आओ नव वर्ष. तुम्हारे आने का लाख-लाख वंदन है! अभिनंदन है!!