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Thursday 2 January 2014

नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन!


प्रणव प्रियदर्शी
रांची : टिक...टिक...टिक...टिक करती घड़ी की सूई. सभी की आंखें टंगी हुर्इं. जैसे-जैसे घड़ी की सूइयां आगे बढ़तीं, लोगों की धड़कनें तेज होती जातीं. नव वर्ष को नव उत्साह के साथ नये भावावेश में जीने की उम्मीदें हिलोरें मारतीं. जैसे धैर्य का एक युग, जैसे एक जंगल फड़फड़ाहट का. जैसे ही घंटा, मिनट और सेकेंड की सूइयां हमआगोश होकर 12 पर थमीं, सब्र का बांध टूटा. हवा में एक तल्खी इस राग के साथ बिखर गयी कि अब तुम आ गये हो, नहीं कर सकते और तुम्हारा इंतजार! छत के नीचे टेलिफोन और मोबाइल की अलग-अलग धुनें गूंजने लगीं. बाहर सर्द सन्नाटे को चीरती पटाखे की ध्वनि से पूरा वातावरण आह्लादित हो उठा. शहर के सारे नामचीन होटल, क्लब, बार, रेस्तरां, पार्क संगीत के सरगम पर थिरकने लगे. वाह! कितना मादक क्षण था वह! बिछोह के क्षण पर आगमन का उत्साह देखते ही बन रहा था. एक उक्ति सटीक बैठ रही थी-आधे प्याले में शराब, मगर खाली नहीं था बाकी का आधा, वह गुम हुआ मदहोशी में.
     बीते वर्ष में हमने क्या गंवाया-क्या समेटा, इस चिंतन की शालीनता शाम ढलते ही ढल गयी. बारहा, सर्द-स्याह रात में चादर में सिमट कर लोग छत पर पहुंच रहे थे. नव वर्ष की खुशी में शुमार हो इंतकाम की सारी हदें पार कर देना चाहते थे. दूसरी तरफ घर में बैठे लोग टीवी के माध्यम से विभिन्न कार्यक्रमों का लुत्फ उठा रहे थे. वहीं, कुछ सुबह के इंतजार में पलकें बिछाए हुए थे. पिकनिक स्पॉट पर जाने के लिए तरह-तरह की योजनाएं बन रही थीं. माहौल की सरगोशी शब्दश: इस बात को बयां कर रही थी कि मनुष्य कहीं नहीं जाता, हर चीज मनुष्य तक आती है, जैसे कल, जैसे नव वर्ष.
     इन सारे मंजर से बेफिक्र हो अनागत-आगत के क्षण पर ठहर कर कोई विरही मन कह रहा था कि कोई दस्तक दे रहा है दरवाजे पर. कितना निराशाजनक है यह. कि तुम नहीं, नया साल आया है. समय की नब्ज पर हाथ रखनेवाले कुछ लोग नव वर्ष से ही संवाद करने में लगे थे. वे कह रहे थे कि अपराधियों की खूनी वारदातें, आततायियों के काले कारनामे, फितरतियों की फिराकपरस्ती और ऐयासों के कायर कहकहे. यदि तुम्हारे पास इतना ही कुछ बचा है; हमारे उत्साह को समय का सौगात देने के लिए, तो तेरे आने-जाने का क्या अर्थ रह जाता है? किस उत्कर्ष की कामना लिये हम तुम्हारा स्वागत करें. और किस संभावना के लिए करें तुमारा अभिनंदन! इसलिए तो कहता हूृं; इतिहास के इंसाफ से पहले कुछ कर सकें हम, कुछ कर सको तुम, तो आओ नव वर्ष. तुम्हारे आने का लाख-लाख वंदन है! अभिनंदन है!!