नयी पीढ़ी का भाषाई भविष्य
प्रणव प्रियदर्शीसमय की रफ्तार आज बहुत तेज हो गयी है. सभी जल्दी में हैं. आगे...और आगे...कदम बढ़ते जा रहे हैं लगातार. मंजिल चाहे जहां मिले, रास्ते पर ठहरना किसी को गवारा नहीं. इसकी गति के साथ कदमताल करने के लिए हर जगह शॉर्टकट अपनाया जा रहा है. कपड़े से लेकर अन्य जीवन व्यवहार में भी. ऐसे में भला भाषा पीछे क्यों रहे, जो हमारी अभव्यक्ति का सहज माध्यम है. कैंपस में स्टूडेंट्स के बीच कोड लैंग्वेज, एब्रीवेशन या स्लैंग की लंबी परंपरा रही है. लेकिन अब कैंपस के बाहर भी युथ फैशन के तौर पर व्यापक रूप से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. इंटरनेट और मोबाइल फोन का बढ़ता चलन और जीवन शैली में गैजेट्स के घुलमिल जाने से जैसे यह इनकी प्रतिबद्धता बन चुकी है.
कुछ भाषाई बानगी तो देखिए...
अभी सो के उठे हो, क्या तुम्हें कैंपिसंग (कैंपस इंटरव्यू) में नहीं जाना है? बीटीडब्ल्यू (बाय द वे) तुम जानती ही होगी, सारा कहां गयी है? उसका रेपो (रेपुटेशन) कॉलेज में बहुत खराब है. बंटी का भी वर्क एक्स (वर्क एक्सपिरयेंस) बहुत बढ़िया नहीं है. यार, आजकल मैं अपने पिग (परमानेंट इल्लिगल गेस्ट) से परेशान हूं. फाई (फॉर योर इनफॉरमेशन) आज मैं कॉलेज नहीं आऊंगा. जरा, पीडी (पेन ड्राइव ) देना तो. इस बार एफबी (फेस बुक) पर तुम्हारा डीपी (प्रोफाइल पीक्चर) ठीक नहीं लगा. चलो, कोई पिक (पिक्चर) देखने चलते हैं, उसके बाद ओडी (आॅडिटोरियम) में बैठ कर मस्ती करेंगे. हमारे कुछ हैप (कॉन्फिडेंट सीनियर स्टूडेंट) वैसे तो ड्यूट अल्टीमेट (बहुत स्मार्ट) हैं, लेकिन कभी-कभी वे हमें शंटिंग (अनदेखा) कर जाते हैं. सीपी(क्लास पार्टिसिपेशन), सीएएम (कांट एग्री मोर), ओटीटी (ओवर दी टॉप), डीपी (डेसपरट पार्टिसिपेशन), डीएल (डायरेक्ट लॉच) जैसे एब्रीवेटिव वर्ड्स का चलन युथ में तेजी से बढ़ रहा है.
नामकरण भी करते हैं छात्र :
कैंपस में एक ट्रेंड यह भी है कि स्टूडेंट्स कुछ खास किस्म के छात्रों की पर्सनिलिटी देख कर उसका छोटा-सा नामकरण कर देते हैं. इस संक्षिप्त नामकरण को देख कर बड़े-बड़े कवियों की कल्पना और वैचिरक चेतना मात खा जाये. टपका (बात-बात में टपक पड़नेवाला), कड़ा (अपनी बात पर अड़नेवाला), पीस (हर बात का मखौल उड़ानेवाला) तेली ग्रुप ( चापलूसों का ग्रुप), बाबा (कॉलेज छोड़ चुके छात्र नेता), फच्चास (फ्रेशर), मामा (जो जूनियर्स के साथ बड़प्पन से पेश आते हों), मार्गयू फेस (गंभीर किस्म के इंसान), एक्ट होलियर (अच्छा कर्मवाला), गीला (एक से ज्यादा लड़कियों की ओर भागनेवाला) छात्रों द्वारा बनाये गये कैंपस डक्शनरी के खास शब्द हैं, जिसे दूसरे लोग नहीं समझ सकते. हर जगह कुछ ऐसे सृजनशील ऊर्जा से लबरेज छात्र होते हैं, जो इस तरह के नये-नये शब्द गढ़ते हैं. और यह धीरे-धीरे कैंपस में सभी की जुबान पर चढ़ जाते हैं.
क्या कहते हैं सर्वेक्षण :
पीव्यू इंटरनेट एंड अमेरिकन लाइफ प्रोजेक्ट द्वारा करवाये गये एक सर्वेक्षण में यह बात निकल कर आयी कि अमेरिका के दो-तिहाई किशोर इंटरनेट स्लैंग व इमोशंस का प्रयोग अपने होमवर्क में करते हैं. शोध में यह भी माना गया कि जो बच्चे इंटरनेट का प्रयोग अधिक करते हैं, उनकी भाषा में स्लैंग शब्दों की प्रचुरता होती है. शोध में एक चौंकानेवाला तथ्य यह भी निकल कर आया कि अधिकतर बच्चे स्लैंग शब्दों का प्रयोग जानबूझ नहीं करते हैं, बल्कि वे इस कदर शॉर्ट फॉर्म में लिखने के आदि हो चुके हैं कि अपने-आप उनकी लेखनी में ये शब्द आ जाते हैं.
कुछ दिनों पहले एक शैक्षिक वेबसाइट ने भाषाओं पर स्लैंग व टेक्स्ट मैसेज के प्रभाव का सर्वेक्षण किया था. सर्वेक्षण में यह बात निकल कर आयी कि स्लैंग भाषा व टेक्स्ट मैसेज के अत्याधिक प्रयोग के चलते बच्चों के व्याकरण के ज्ञान पर प्रभाव पर रहा है. हालांकि विदेशों के मुकाबले हमारे देश में अभी यह चलन इतना अधिक नहीं बढ़ा है, फिर भी स्लैंग शब्दों व टेक्स्टिंग के बढ़ते चलन को देखते हुए इसे नयी पीढ़ी का भाषायी भविष्य कहना गलत नहीं होगा.
इंटरनेट पर सर्च करें शॉर्टफार्म :
1. नेटलिंगो डॉट कॉम, यहां आप आजकल अंगरेजी में प्रयोग होनेवाले स्लैंग शब्दों का अर्थ खोज सकते हैं. इसके अलावा आॅनलाइन व्यापार, प्रौद्योगिकी व संचार से संबंधित स्लैंग की भी यहां जानकारी है.
2. ‘द पीवीश डिक्शनरी आॅफ स्लैंग’ में ब्रिटीश अंग्रेजी में प्रयुक्त होनेवाली स्लैंग भाषा की जानकारी मिल सकती है.
3. ‘एब्रीवेशनजेड’ में आपको व्यापार, कंप्यूटिंग, चैट, विज्ञान आदि क्षेत्रों से संबंधित तीन लाख से भी अधिक शब्दों के एब्रीवेशन यानी शॉर्टफॉर्म मिल जायेंगे.
4. फॉलडॉल डॉट आॅर्ग स्लैंग की आॅनलाइन डिक्शनरी हैं.
क्या कहते हैं युथ :
गैजेट पर इस्तेमाल होनेवाली स्लैंग भाषा की वजह से युथ के लिए इंटरनेट पर सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट का उपयोग बढ़ा है. अधिक एसएमएस करने की प्रवृति में इजाफा हुआ है. इससे समय की बचत होती है. पैसे भी बचते हैं. कम समय में अधिक से अधिक बातचीत हो जाती है.
रजनीकांत
इंटरनेट स्लैंग व टेक्स्ट मैसेज में इस्तेमाल होनेवाले एब्रीवेशन दोस्तों से बात करने का आसान जरिया है। इसके लिए यह कहना सही नहीं होगा कि इससे उनके मानसिक विकास या भाषायी ज्ञान पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है. चूंकि गैंजेट पर स्लैंग भाषा का इस्तेमाल आसान हैं. इसलिए हम इसका प्रयोग अधिक करते हैं.
अंबुज
दोस्तों के बीच बातचीत में हम शॉर्टकट शब्दों का इस्तेमाल अधिक करते हैं. यह हमारी पहचान और अपनत्व का एक माध्यम बन चुका है. जिस वर्चुअल दुनिया में हम जी रहे हैं, उसकी यह मजबूरी है और हमारे लिए मस्ती एक अवसर भी. हालांकि हम अपने पैरेंट्स के साथ बातचीत में ऐसे एब्रीवेशन का इस्तेमाल नहीं करते हैं.
उत्पल
एब्रीवेटिव शब्दों का प्रयोग हम अपने दोस्तों के बीच निजी बातचीत शेयर करने के लिए ही करते हैं. इसका कैंपस या इंटेरनेट से बाहर कोई अस्तित्व नहीं होता. आॅफिशियली इसका इस्तेमाल नहीं किया जाता है. हां, हमें इतनी सतकर्ता तो बरतनी ही होगी कि इस तरह के शब्द हमारी मूल भाषा पर अपना प्रभाव नहीं छोड़े.
मयंक