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Tuesday 27 November 2012

जीबऽ जीबऽ जीबऽ की मोर भैया जीव’



प्रणव प्रियदर्शी
रांची : झुंड में चंगेरा के साथ सामा की मूर्ति लिये मिथिलानियों की चहलकदमी और झारखंड मैथिली मंच के पारंपरिक आयोजन से मंगलवार को हरमू मैदान दमक उठा था। नारी मुक्ति व भाई-भहन के अटूट प्रेम का लोक पर्व सामा-चकेवा भातृ द्वितिया से प्रारंभ होकर मंगलवार को संपन्न हो गया। कॉलोनियों में भी कई जगह मिथिलानियां सामा-चकेवा का विधान करती दिखीं। झारखंड मैथिली मंच द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मैथिल भाषा-भाषियों ने सामूहिक रूप से सामा-चकेवा का विसर्जन किया। 200 से अधिक महिलाएं अपने घर से डाला-चंगेरा सजाकर लायी थी। सामा अदला-बदली के दौरान पारंपरिक मंत्र से भाइयों के दीर्घायु जीवन की कामना की गयी। जीबऽ जीबऽ जीबऽ की मोर भैया जीव’/ कि तोर भैया जीव’/ जैसन धोबियाक पाट तैसन भैयाक पीठ/जैसन करड़िक थम्ह तैसन भैयाक जांघ/जैसन पोखरि सेमार तैंसन भैयाक टीक। सामा-चकेवा पर धार्मिकता से अधिक समाजिकता का पक्ष भारी है। यही कारण है कि लोक आस्था का उक्त पर्व राजनीतिक संघर्ष एवं नारी मुक्ति से जुड़ी कई पौराणिक गाथाओं की याद ताजा करा जाता है। सामा-चकेवा धार्मिकता एवं सामाजिकता से जुड़ी नारी संघर्ष एवं उसकी मुक्ति की एक अजीबो-गरीब गाथा है। महिलाओं द्वारा इसकी महत्ता को उजागर करते हुए इसे भैया-दूज से शुरू कर कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि में समापन किया जाता है। इस बीच प्रत्येक रात्रि में महिलाओं की टोली द्वारा नारी संघर्ष एवं मुक्ति से जुड़े उक्त पौराणिक कथाओं पर आधारित लोकगीत का गायन कर बिसरती यादों को ताजा किया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण की बेटी सामा प्रतिदिन वृंदावन पूजा करने के लिए दासी बिहुला के साथ जाती थी। बिहुला ईर्ष्यालु महिला थी। वह सामा से जलती थी। एक दिन उसने भगवान से सामा की चुगली करते हुए कहा कि वह वहां ऋषियों और साधु-संतों के साथ रमण करती है। इस पर भगवान ने कुपित होकर अपनी पुत्री को शाप दे दिया, जिससे वह पक्षी बन गयी। पत्नी के वियोग में तपस्या कर सामा के पति भी पक्षी बन गये। भाई शाम्ब को इस प्रकरण का पता चला तो वह घोर तपस्या कर भगवान को प्रसन्न किया और सभी को शाप मुक्त करवाया। इसकी याद में हर साल भातृ द्वितिया के दिन से पूर्णिमा तक सामा-चकेवा पर्व मनाया जाता है। बुराई का प्रतीक चुगला(बिहुला) को जलाया जाता है। महिलाएं एक बड़े सूप में समा-चकेवा, शाम्ब, वृंदावन, चुगला बनाती हैं। इसी तरह हमारी लोक परंपरा में अधिकांश पर्व के पीछे कोई न कोई कहानी जुड़ी होती है, जो हमारे जीवन राग को आंदोलित करती रहती है। कहानियां न होती तो शायद हमारे जीवन में संवेदनात्म जुड़ाव और कल्पना का कोई विशाल आकाश न होता। किसी न किसी रूप में हमारे पास अगर कोई कहानियां न होती तो हमारा जीवन कैसा होता सोचा जा सकता है! कहानी की सत्यता अथवा असत्यता का विचार अलग बात है, उसका उद्देश्य महत्वपूर्ण होता है। इसी परिप्रेक्ष्य में सामा-चकेवा के अवसर पर झारखंड मैथिली मंच के साहित्याकारों का संकलित कथा संग्रह ‘आखरक इजोरिया’ का लोकार्पण किया गया। डॉ. कृष्ण मोहन झा ने कथा संग्रह की विशिष्टता से लोगों को परिचित कराया। इस अवसर पर झारखंड क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष अमिताभ चौधरी को ‘मैथिल पुत्र’ सम्मान से सुशोभित किया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान बबीता झा व पूनम मिश्रा के गीतों पर लोग खूब झूमे। कार्यक्रम का संचालन आभा झा ने किया। अतिथि के रूप में डॉ. करुणा झा ने लोगों का उत्साह बढ़ाया। कार्यक्रम के दौरान झारखंड मैथिली मंच के अध्यक्ष काशीनाथ झा, महासचिव कृष्ण कुमार झा, कोषाध्यक्ष प्रेमचंद्र झा, अरुण झा, सर्वजीत चौधरी, ब्रजकिशोर झा, मोहन झा, सतीश झा आदि उपस्थित थे।

1 comment :

  1. सामा-चकेवा के विषय में जानने की उत्सुकता बहुत वर्षों से थी -जब से रेणु जी का मैला आँचल पढ़ा था .कथा जान कर और उत्सव का रूप देख कर समाधान हुआ और लोक-संस्कृति यह सुन्दर रूप आनन्दित कर गया -आभार !

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