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Sunday 12 May 2013

सभी सीमाओं को तोड़ घटता है संयोग


जीवन में कुछ चीजें हमारे चाहने से नहीं घटती, बस घटती हैं । कब, कैसे, किसतरह कुछ कहा नहीं जा सकता। इसकी भविष्यवानी नहीं की जा सकती। इसलिए इसका अहसास ही अलौकिक होता है। इसकी संजीदगी बहुत ही निर्दोष एवं निर्निमेषपूर्ण होती है, बिलकुल अनछुए हाथों का अविस्मरणीय स्पर्श जैसा।
प्रणव प्रियदर्शी
रास्ते में चलते हुए कभी-कहीं वर्षों पुराना कोई बिछड़ा साथी मिल जाता है, तो हम विस्मयपूर्ण ढंग से यकायक पूछ बैठते हैं-अरे तुम, यहां कैसे? कभी किसी अजनबी से अनजाने में एक मुलाकात के बाद धीरे-धीरे हम कैसे एक-दूसरे की पसंद बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता। जीवन में कभी-कभी अनचाहे ढंग से कुछ ऐसा घट जाता है, जिसके बारे में पहले हम कभी  सोचे ही नहीं होते और वही एक घटना हमारे समग्र जीवन की दिशा बदल कर रख देती है। हम इसे संयोग का नाम दें या  किसी अज्ञात शक्ति का हाथ मानें अथवा अनिश्चित जीवन का एक पहलू बात एक ही है।
         जीवन ऐसे ही छोटे-छोटे धागों से रचा-बुना होता है। कभी हमारी अपेक्षा के अनुकूल तो कभी प्रतिकूलता की नाव पर चढ़ कर बढ़ता जाता है। संयोग का इसमें अहम स्थान होता है, क्योंकि यह हमारे चाहने से नहीं घटता, बस घटता है। कब, कैसे, किस तरह कुछ कहा नहीं जा सकता। इसकी भविष्यवानी नहीं की जा सकती। इसलिए इसका अहसास ही अलौकिक होता है। इसकी संजीदगी बहुत ही निर्दोष एवं निर्निमेषपूर्ण होती है, बिलकुल अनछुए हाथों का अविस्मरणीय स्पर्श जैसा। इसलिए तो कहा गया है कि हमारे चाहने से जो घटित होता है, वह क्षुद्र ही हो सकता है।  जो चीज अचानक, अनायास, अपने-आप, अनअपेक्षित ढंग से समय के किसी ठहरे हुए पल में घट जाती है; वही महान, दिव्य और हमें सार्थकता प्रदान करनेवाली होती है।
           फिर भी गर्दिश के दिनों में अपनी हर कोशिशों से थक हार कर हम अंतत: ऐसे ही किसी संयोग, चमत्कार या अदृश्य हाथों का सहारा पाने के लिए विकल रहते हैं। कोई किसी धार्मिक स्थल में जाकर इसके लिए विनती करता है, तो कोई मन मसोस कर जीने के प्रतिबद्ध होता है। यहीं से तो आध्यात्म का प्रादुर्भाव होता है। भले ही हम अपने-आप को आध्यात्मिक या आस्तिक कहना पसंद न करें; लेकिन जो जीवन की हर संभावनाओं के प्रति खुला रहता है, वह प्राकृतिक रूप से आस्तिक होता ही है, हो ही जाता है। जीवन की समग्रता में आस्था रखनेवाला ही तो आस्तिक होता है, भले ही इस आस्था को कुछ भी नाम दे डालें या अनाम ही रहने दें, कुछ फर्क नहीं पड़ता।
           हां; हम बात कर रहे थे संयोग की। संयोग आपके जीवन में भी निश्चित रूप से घटा होगा, किसी-न-किसी रूप में। क्या आप बहुतों की तरह फिर से किसी संयोग के घटने की बात सोच रहे हैं, तो देर किस बात की है। अपने को अपने में कैद करना छोड़ आसपास के खुले वातावरण में स्वतंत्र रूप से सांस लें। स्वयं को जीवन की हर संभावनाओं के प्रति तैयार करें। सभी सीमाओं को तोड़, फिर देखिए कैसे घटता है संयोग।

Sunday 5 May 2013

असफलता की सीख बनी सफलता का सबब

 इंडियन स्कूल आफ माइन्स के दाखिले की परीक्षा  में पूरे भारत में प्रथम स्थान

इंडियन इंस्टिट्यूट आफ टेक्नोलॉजी, खड़गपुर में अपनी व्यापार नीति का लोहा मनवा

‘किसिंग आस्कर‘ नाम की वैज्ञानिक किताब 2012 में बेस्ट सेलर चुनी गयी

प्रणव प्रियदर्शी
रांची : प्रतिभा राहों की पहचान में मात भले खा जाए, लेकिन जब सही राह पर आती है तो प्रतिमान स्थापित करती है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है धनबाद के 27 वर्षीय श्री अभिनव कुमार श्रीवास्तव ने। इनकी शुरुआती असफलता ही सफलता का सबब बनी। अभिनव की कहानी किसी परिकथा से कम नहीं है, लेकिन ये कहानी शत प्रतिशत सत्य है। अभिनव किसी भी व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व के बारे में सब कुछ बता सकते हैं, उस व्यक्ति की लेखनी और हस्ताक्षर पढ़ कर। अत्यंत तेजस्वी, शांत और शर्मीले स्वाभाव के अभिनव की संघर्ष की कहानी प्रारंभ हुई 2003 से। जब अभिनव को बोर्ड परीक्षा में गणित में 100 में एक अंक आया था। अभिनव ने अपनी लेखनी देख कर आर्ट्स की पढ़ाई चालू कर दी और इग्नु से स्नातक किया। पांच वर्ष तक अभिनव अध्यन करते रहे और लेखनी कला अर्थात ‘ग्राफोलॉजी’ का भी शोध करते रहे।
  इसका निष्कर्ष ये निकला की सन 2008 में अभिनव ने इंडियन स्कूल आॅफ माइन्स के दाखिले की परीक्षा में पूरे भारत में प्रथम स्थान प्राप्त किया और इसके उपरांत अभिनव की अत्यंत ओजस्वी छवि दिन दूनी  और रात चौगुनी उभरती रही। कुशल नेतृत्व  में अत्यंत सक्षम अभिनव ने 2009 की जनवरी में इंडियन इंस्टिटयूट आॅफ टेक्नोलॉजी, खड़गपुर में अपनी व्यापार नीति का लोहा मनवाया और प्रोजेक्ट  प्रमुख के प्रभार में पूरे भारत में तीसरा स्थान प्राप्त किया। तदनुपरांत अभिनव ने एक ‘किसिंग आस्कर‘ नाम की एक वैज्ञानिक किताब लिखी, जो कि लंदन स्थित औथोर हाउस से प्रकाशित हुई है। 2012 में यह किताब बेस्ट सेलर में चुनी गई है। इनके तीन अनुसंधान पत्रिका ‘इन्स्टीट्यूट आफ पब्लिक एंटरप्राइज़स, हैदराबाद’ में प्रकाशित हो चुके हैं। ज्ञातव्य है कि यह संस्थान, इंडियन काउन्सिल आफ सोशल साइन्स एंड रिसर्च के द्वारा ‘सेंटर फॉर एक्सलेन्स इन डॉक्टोरल स्टडीस’ मान्यता प्राप्त है। ये अभी निम्स यूनिवसिर्टी, शोभनगर, जयपुर से मैनेजमेंट में डॉक्टोरेट आफ फिलॉसफी कर रहे हैं। अपनी ठोस अनुसंधान प्रक्रिया पर काम करने के कारण अभिनव को पड़ोसी मित्र देश श्री लंका की ‘मिनिस्ट्री आॅफ वॉटर सप्लाइ एंड ड्रेनेज’ ने आने का निमंत्रण दिया। अभिनव ने श्री लंका और भारत दोनों देशों में परस्पर सहयोग से पानी की समस्या कैसे दूर की जाए, जैसी समस्याओं का निदान अपने प्रॉजेक्ट के निष्कर्ष में दिया है।
  अभिनव की कार्यशैली को देखते हुए सितम्बर 2012 में इग्नु के कार्यक्रम ‘अप्रिसियेशन कोर्स इन एन्वाइरन्मेंट’ में उन्हें गेस्ट लेक्चर के रूप में आमंत्रित किया गया। इस कार्यक्रम में जल संकट और जल प्रलय की विभिन्न समस्याओं से निबटने की तकनीकों के बारे में विस्तार से बताया। इनकी लेखनी पहचानने की कला के विभिन्न पहलू पर आइआइटी, रूड़की और दिल्ली ने भी अपनी स्वीकृति दी। अभिनव ने अंतत: 1600 बच्चों की लेखनी पर शोध पूरा किया और उनके इस उत्कृष्ट कार्य को नटिओना रिसर्च यूनिवर्सिटी, हाइयर स्कूल आॅफ एकनॉमिक्स, मॉस्को, रशिया से निमंत्रण मिला। अभिनव इस कार्यक्रम में भारत से अकेले प्रतिभागी थे और नालेज मैनेजमेंट में पूरे विषय से केवल 6 प्रतिभागी निमंत्रित किए गये थे। इतनी सफलता पर अभिनव का कहना है कि ‘मैने ग्राफोलोजी से पहले अपनी जिंदगी बदली और अब दूसरों को रास्ता दिखा रहा हूं। बिना आत्मपरीक्षण का कोई भी ज्ञान व्यर्थ है। मेरी सारी सफलता का आधार ग्राफोलोजी है। अब मैं ग्राफोलोजी से सबकी सहायता करना चाहता हूं।’  अभिनव ‘सृजन 2013’ में ग्राफोलोजी पर वर्कशॉप करवाने के लिए आमंत्रित किए गये हैं। वो इस वर्कशॉप में आईएसएम, धनबाद में अपने जूनियर्स को ग्राफोलॉजी के विभिन्न पहलुओं से रुबरू करवाएंगे।

तूफान जब बैठा हुआ हो नाव में...

झारखंड हिंदी साहित्य विचार मंच ने किया कवि गोष्ठी का आयोजन

‘झारखंड के शब्द शिल्पी’ पुस्तक के प्रकाशन के संबंध में चर्चा की गई

गीतकार राम कृष्ण उन्नयन के निधन पर मौन रख कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया

मंच की कुछ मांगों पर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराने की कोशिश की जाएगी

प्रणव प्रियदर्शी
रांची : धूप की अटखेलियों से परेशान हो भावनाओं की छांव की तलाश में रविवार को साहित्य प्रेमियों का जमघट प्रभात टॉवर में लगा। कवियों के बीच बैठे-बैठे लोग कब छांव को भी पीछे छोड़ चले, मुड़ कर देखने की फूर्सत नहीं बची थी। काव्य गोष्ठी नवोदित रचनाकारों से शुरू होकर वरिष्ठ रचनाकारों तक पहुंची। इस दरमियान पहचानो खुद को... नारी का सम्मान करो.. जैसी रचनाएं कवयित्री गौरी ने सुनायी। ललन चतुर्वेदी ने बदलते चेहरे की भावभंगिमा को काव्य शिल्प में पिरोकर सभी के सम्मुख रखा। धीरेंद्र विद्यार्थी ने ‘तूफान जब बैठा हो नाव में’ जैसी कविता सुना कर खूब तालियां बटोरी। शेली ने ‘किसने घर उजाड़ा मेरा’ जैसी संवेदनशील कविता से सभी को मोहित किया। प्रणव प्रियदर्शी वक्त की विडंबनाओं पर कविताओं में अपनी बात रखी- ‘बेजार होती जिंदगी/कहीं सिक्के की तरह/वक्त की कीमत भी न घटा दे।’ इनके अतिरिक्त डॉ. नीलम, डॉ. बसुदेव, डॉ अंजेश, सियाराम झा सरस, कुमार बृजेंद्र, प्रवीण परिमल, शंभु श्रीवास्तव, धीरेंद्र विद्यार्थी, कन्हैयालाल ओझा, कलावंती सुमन और बीना श्रीवास्तव आदि ने भी काव्य पाठ किया।
इससे पहले कार्यक्रम के प्रथम सत्र में डॉ दिग्विजय सहाय की अध्यक्षता में झारखंड के साहित्यकारों का परिचय कोश ‘झारखंड के शब्द शिल्पी’ पुस्तक के प्रकाशन के संबंध में चर्चा की गई। इस दौरान सर्व प्रथम कवि गीतकार राम कृष्ण उन्नयन के निधन पर दो मिनट का मौन रख कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया। उनके कृतित्व व व्यक्तित्व की जानकारी कामेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव निरंकुश ने दी। उन्होंने कहा कि राम कृष्ण का निधन साहित्य जगत की अपूर्णनीय क्षति है। इसके साथ ही झारखंड के साहित्यकारों में चर्चित विदुषी कवयित्री डॉ लक्ष्मी विमल की तबीयत अचानक बिगड़ जाने के कारण उनके स्वस्थ होने की कामना भी ईश्वर से की गई। मंच की तरफ से साहित्य अकादमी का गठन करने, राधाकृष्ण पुस्तकालय स्थापित करने, चर्चित साहित्यकारों की जयंती मनाने संबंधी मांग पर सरकार का ध्यान आकृष्ट करने की पुन: कोशिश करने की बात कही गई। बैठक में निर्णय लिया गया कि उपस्थित साहित्कार सम्पर्क अभियान के द्वारा अनेय साहित्यकारों से संपर्क कर प्रस्तावित परफार्मा भरवाकर तस्वीर के साथ कार्यालय में जमा करें, ताकि रांची जिला के हिंदी साहित्यकारों की परिचय पुस्तिका ‘झारखंड के शब्द शिल्पी’ का प्रकाशन यथाशीघ्र किया जा सके। कार्यक्रम

के दोनों सत्रों का संचालन विजय रंजन ने किया।