जीवन में कुछ चीजें हमारे चाहने से नहीं घटती, बस घटती हैं । कब, कैसे, किसतरह कुछ कहा नहीं जा सकता। इसकी भविष्यवानी नहीं की जा सकती। इसलिए इसका अहसास ही अलौकिक होता है। इसकी संजीदगी बहुत ही निर्दोष एवं निर्निमेषपूर्ण होती है, बिलकुल अनछुए हाथों का अविस्मरणीय स्पर्श जैसा।
प्रणव प्रियदर्शी
रास्ते में चलते हुए कभी-कहीं वर्षों पुराना कोई बिछड़ा साथी मिल जाता है, तो हम विस्मयपूर्ण ढंग से यकायक पूछ बैठते हैं-अरे तुम, यहां कैसे? कभी किसी अजनबी से अनजाने में एक मुलाकात के बाद धीरे-धीरे हम कैसे एक-दूसरे की पसंद बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता। जीवन में कभी-कभी अनचाहे ढंग से कुछ ऐसा घट जाता है, जिसके बारे में पहले हम कभी सोचे ही नहीं होते और वही एक घटना हमारे समग्र जीवन की दिशा बदल कर रख देती है। हम इसे संयोग का नाम दें या किसी अज्ञात शक्ति का हाथ मानें अथवा अनिश्चित जीवन का एक पहलू बात एक ही है।
जीवन ऐसे ही छोटे-छोटे धागों से रचा-बुना होता है। कभी हमारी अपेक्षा के अनुकूल तो कभी प्रतिकूलता की नाव पर चढ़ कर बढ़ता जाता है। संयोग का इसमें अहम स्थान होता है, क्योंकि यह हमारे चाहने से नहीं घटता, बस घटता है। कब, कैसे, किस तरह कुछ कहा नहीं जा सकता। इसकी भविष्यवानी नहीं की जा सकती। इसलिए इसका अहसास ही अलौकिक होता है। इसकी संजीदगी बहुत ही निर्दोष एवं निर्निमेषपूर्ण होती है, बिलकुल अनछुए हाथों का अविस्मरणीय स्पर्श जैसा। इसलिए तो कहा गया है कि हमारे चाहने से जो घटित होता है, वह क्षुद्र ही हो सकता है। जो चीज अचानक, अनायास, अपने-आप, अनअपेक्षित ढंग से समय के किसी ठहरे हुए पल में घट जाती है; वही महान, दिव्य और हमें सार्थकता प्रदान करनेवाली होती है।
फिर भी गर्दिश के दिनों में अपनी हर कोशिशों से थक हार कर हम अंतत: ऐसे ही किसी संयोग, चमत्कार या अदृश्य हाथों का सहारा पाने के लिए विकल रहते हैं। कोई किसी धार्मिक स्थल में जाकर इसके लिए विनती करता है, तो कोई मन मसोस कर जीने के प्रतिबद्ध होता है। यहीं से तो आध्यात्म का प्रादुर्भाव होता है। भले ही हम अपने-आप को आध्यात्मिक या आस्तिक कहना पसंद न करें; लेकिन जो जीवन की हर संभावनाओं के प्रति खुला रहता है, वह प्राकृतिक रूप से आस्तिक होता ही है, हो ही जाता है। जीवन की समग्रता में आस्था रखनेवाला ही तो आस्तिक होता है, भले ही इस आस्था को कुछ भी नाम दे डालें या अनाम ही रहने दें, कुछ फर्क नहीं पड़ता।
हां; हम बात कर रहे थे संयोग की। संयोग आपके जीवन में भी निश्चित रूप से घटा होगा, किसी-न-किसी रूप में। क्या आप बहुतों की तरह फिर से किसी संयोग के घटने की बात सोच रहे हैं, तो देर किस बात की है। अपने को अपने में कैद करना छोड़ आसपास के खुले वातावरण में स्वतंत्र रूप से सांस लें। स्वयं को जीवन की हर संभावनाओं के प्रति तैयार करें। सभी सीमाओं को तोड़, फिर देखिए कैसे घटता है संयोग।
मैंने आपकी दो कविताएं आभार पूर्वक दैनिक सन्मार्ग में प्रकाशित की हैं। आप गूगल में sanmargjharkhand पर जाकर ई-पेपर पेज-6 देख सकते हैं। धन्यवाद
ReplyDeleteupar likha hua message aapne mere blog par diya tha. main apke diye link par apni kavita dhoondhne me asmarth rahi. kripya aap link bheje aur date bataye kis date me kis page par ye rachna prakashit hui hain.
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