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Saturday 19 October 2013

आतंकी पनाह से दहल रहा मिथिलांचल


प्रणव प्रियदर्शी 
विरल संस्कृति, सहजीवन पद्धति और सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करनेवाला मिथिलांचल अब परेशान हो उठा है। आखिर हो भी क्यों नहीं; सहज जीवन का स्वर साधक मिथिला को आतंकियों की नजर डसती जा रही है। अमन-चैन की यह धरती आतंकी फसल को लहलहाते देख सतर्कता और सकुचाहट के साथ संशय में पड़ गयी है। मिथिला की विशेषता ही इसकी कमजोरी बन गयी है। आज यह भूमि आंतकियों का 'सेफ जोन' माना जा रहा है। बोधगया बम ब्लास्ट के बाद से बिहार भी पहली बार आतंकी हमला का केंद्र बिंदु बन गया। तिस पर से एक के बाद एक इंडियम मुजाहिदीन (आइएम), लश्कर-ए तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन के आतंकवादियों की लगातार गिरप्तारी से यह अपने अस्तित्व का मुंह जोहने लगा है। ये धरती अब खुफिया एजेंसी और राष्ट्रीय जांच एजेंसी की नजरों में गर गयी है।
      पहली बार आतंकवादी गतिविधियों को लेकर मिथिलांचल के दरभंगा जिले का नाम वर्ष 2007 में पहली बार सामने आया था।  इस वर्ष अंडर वर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहीम के खासमखास फजलुर रहमान की गिरफ्तारी के लिए जाले थाना के देवरा बंधौली गांव में छापामारी की गयी। हालांकि वह पुलिस की पकड़ से बच निकला था। 17 अप्रैल 2010 बेंगलूर के चिन्ना स्वामी स्टेडियम में हुए धमाके को लेकर बाढ़ समैला गांव के मोहम्मद कफिल, मोहम्मद कतिल और मोहम्मद गौहर अजीज को गिरफ्तार किया जा चुका है। गिरफ्तार आतंकवादियों से मिली सूचना पर ही इसी गांव के दो आतंकी मोहम्मद सैफ और फसी अहमद महमूद को सउदी अरब से पिछले वर्ष गिरफ्तार किया गया था। इस वर्ष 21 जनवरी 2013 को भटकल के बेहद करीबी मोहम्मद दानिश को दरभंगा जिले के लहेरियासराय थाना के चकजोहरा गांव से जांच एजेंसी ने गिरफ्तार किया था। यहां इसके रहने की सारी व्यवस्था भटकल ने ही किया था।
     इसतरह छोटे-बड़े स्तर पर यह क्रम जारी है। इसी क्रम में पिछला महीना 29 अगस्त को नेपाल से सटा बिहार के रक्सौल शहर से इंडियन मुजाहिदीन सरगना और सह संस्थापक यासीन भटकल और उसका करीबी असदुल्ला अख्तर उर्फ हड्डी को गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी बिहार पुलिस और एमआइए के सामूहिक सहयोग से हुई। शेष आतंकवादियों की गिरफ्तारी के लिए जांच एजेंसी लगातार अभियान चला रहा है। बिहार पुलिस का कहना है कि अपने मिशन को अंजाम देने की योजना पे बात करने के लिए यहां इकट्ठा हुए थे। भटकल देश के 12 सबसे अधिक वांछित आंतकवादी की सूची में शामिल था। इसे पकड़ने में खुफिया एजेंसी को छह महीना का समय लग गया।
     हैदराबाद में इस वर्ष फरवरी में हुए बम धमाके में उसका हाथ होने का पता लगने के बाद पूरा तंत्र उसकी गिरफ्तारी में जुटा था। और, वह अपनी पहचान छिपा-छिपा के बिहार के गांवों को अपना आसरा बना रहा था। कहा जा रहा है कि भटकल की गिरफ्तारी अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहीम एवं हाफिज सईद के करीबी आ लश्कर-ए-तैयबा का बम एक्सपर्ट आतंकवादी टुंडा के निशानदेही पर हुई। टुंडा की गिरफ्तारी पिछला महीना अगस्त में हुई। 70 वर्षीय अब्दुल करीम टुंडा को भारत-नेपाल सीमा पर बनबसा (महेंद्रनगर, उत्तराखंड) से दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया। 26 नवंबर (26/11) 2008 के चर्चित मुंबई आतंकी हमला के बाद भारत ने पाकिस्तान को जो 20 आतंकवादियों की सूची दी थी, उसमें टुंडा का नाम सबसे ऊपर था। टुंडा की गिरफ्तारी के एक ही सप्ताह बाद 24 अगस्त को बिहार के कटिहार जिला के कदवा थाना क्षेत्र के सिंगलपुर गांव से पुलिस ने टुंडा के सहयोगी मोहम्मद बशीर को गिरफ्तार किया।
     कनार्टक के भटकल गांव का रहनेवाला यासीन का ससुराल समस्तीपुर है। उसका लाभ उसे हरदम अपने काम को आगे बढ़ाने में मिलता रहा। गिरफ्तारी के बाद एनआइए उसे पूछताछ के लिए दरंभगा भी ले गयी थी। कड़ी सुरक्षा के बीच एनआइए की टीम भटकल को लेकर लेहरियासराय थानांतर्गत करमगंज मुहल्ला के पुस्तकालय ले गयी, जहां वह आया-जाया करता था। जमालचक गांव मंे जहां भटकल रहता था और अन्य जगहों से भी जानकारियां इकट्ठी की गयी। वर्ष 2010-12 के बीच भटकल डॉ. इमरान नाम से यूनानी चिकित्सक के रूप में यहां रहता था। इसके पीछे नवयुवकों को बहला-फुसला कर अपने संगठन का सदस्य बनाता था। इसी साल 21 जनवरी को भटकल का बेहद सहयोगी मोहम्मद दानिश को भी  दरभंगा के लेहरियासराय थाना के चकजोहरा से जांच एजेंसी ने गिरफ्तार किया था।
      इसतरह के आतंकी गतिविधियों के पद्चाप का मूल कारण है भारत-नेपाल की खुली सीमा। उत्तराखंड से बिहार तक नेपाल के साथ खली सीमा है। बिना अवरोध इस सीमा पर आवागमन जारी है। भारत-पाकिस्तान सीमा पर कड़ा पहड़ा है। इसलिए पाकिस्तानी आतंकवादी अपना मंसूबा पूरा करने के लिए बेधड़क इस सीमा का इसेतमाल कर रहे हैं। सैकड़ों कीलोमीटर इस सीमा पर प्रांतीय पुलिस और एसएसबी के जवान तैनात है, जिन पर सख्ती नहीं करने का दबाव है। धर्मावलंबियों के प्रति भारत में सदियों से उदारता का भाव है, जिसका लाभ आतंकवादी उठाते हैं।
      कहा जा रहा है कि बिहार के बॉर्डर इलाका मे पढे़-लिखे लोग और आम लोग जो कमाने के लिए बिहार से बाहर जा रहे हैं, उनकी जमीन एक समुदाय के लोग भारी संख्या में खरीद रहे हैं। विदेश से आये रुपये का निवेश जमीन-खेत-खलिहान-बगीचा खरीदने में किया जा रहा है। इलाका के ब्राह्मण, कायस्थ, भूमिहार और दूसरी जाति के लोग भी नौकरी के सिलसिले में गांव छोड़ रहे हैं। इसतरह के गांव छोड़नेवाले लोगों की जमीन पर असमाजिक गतिविधि चलानेवाले लोगों की नजर है। इस पर गौर करने की जरूरत है।
      देश भर में कहीं से अपराध कर बिहार आयें। बिहार से नेपाल और बंग्लादेश होकर बाहर निकल जायें। इसी कारण इंडियन मुजाहिदीन और दूसरे आतंकवादी संगठन मिथिला में अपनी पकड़ मजबूत बनाने में लगे हैं। आतंकी अभी पूरा उत्तर बिहार-मिथिला के इलाके पर अपना तंत्र मजबूत करने में लगा है। इसमें चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, पूर्णिया, अररिया, सहरसा आौर दूसरे बॉर्डर इलाका के लोगों को संगठन से जोड़ा जा रहा है। ये इलाके पहले से ही स्मगलिंग के लिए बदनाम है। आम समान में तस्करी में तो कमी आयी है, लेकिन अब हवाला और दूसरे तरह की तस्करी बढ़ रही है। आतंकी नये-नये इलाकों की तलाश कर रहे हैं। उसमें मिथिला का इलाका सबसे अच्छा माना जा रहा है, आतंकी गतिविधि को चलाने के लिए।
         नेपाल के रास्ते पाकिस्तान से बड़ी संख्या में आतंकवादी भारत आ रहे हैं। आतंकवादी इसी रास्ते भारत आकर आत्मसमर्पण भी कर रहे हैं। वर्ष 2010 से अब तक 300 से अधिक आतंकवादी भारत में आकर आत्मसमर्पण कर चुके हैं। इनमें कई भारतीय युवा पाकिस्तान जाकर आतंकवाद का प्रशिक्षण हासिल करके जब नियंत्रण रेखा से भारत लौटने में कामयाब नहीं हुए तो उन्होंने वहीं शादी विवाह कर लिये। अब बाल-बच्चों को साथ लेकर भारत लौट रहे हैं। पूवार्ेत्तर के कई उग्रवादी भी नेपाल के रास्ते का इस्तेमाल करते हुए पकडे़ गये हैं।
इन सभ गतिविधियों पर अंकुश लगाने के मद्देनजर 2005 से भारत-नेपाल के बीच सीमा समझौता करने की बात शुरू हुई थी। लेकिन नेपाल अपनी राजनीतिक अस्थिरता का बहाना बना कर समझौता की बात टाल दिया, जो अभी भी टला हुआ है। एसएसबी कितनी बार कह चुका है कि भारत की सीमा पर कुकुरमुत्ता की तरह उगा मदरसा खतरनाक साबित हो रहा है। मिथिला के बॉर्डर वाले इलाके में बताया जा रहा है कि पिछले 15-20 साल में मस्जिद-मदरसा की संख्या 10 गुना से अधिक बढ़ गयी है। आइएम (इंडियन मुजाहिदीन) आओर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ (इंटर सर्विस इंटेलिजेंस) इसके माध्यम से युवकों को जेहाद के लिए भड़का रहे हैं।
          कहा जा रहा है कि नेपाल और अरब देश के जरिये आइएसआइ बिहार के बार्डर इलाकों में काफी पैसा भेज रहा है। इन इलाकों में बन रही बड़ी-बड़ी मस्जिद-मदरसा के लिए अरब से पैसे आ रहे हैं। लेकिन वोट का गणित भारत सरकार को इस दिशा में पैर उठाने के लिए रोक रहा है। आतंकवादी वोट के आधारवाले इस भाव को समझते हैं, इस कारण बेरोकटोक मदरसा खोल भारत को अस्थिर करने का मंसूबा पूरा कर रहे हैं। चिंता की बात यह भी है कि नीतीश सरकार इन सब समस्याओं को केंद्र सरकार और पुलिस प्रशासन का दायित्व समझ कर मौन साधे हुई है। आवश्यकता है मिथिला के आमजन के साथ पूरा बिहार और भारत को जागरूक होने की। दहशतगर्दियों के खिलाफ प्रतिबद्ध होकर शंखनाद करने की। 

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