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Monday 29 July 2013

सियासत के दावों में जनता का बहाना

प्रणव प्रियदर्शी
सरकार कौन बनाती है, जनता। सरकार किसके लिए बनती है जनता के लिए। सरकार किसके द्वारा संचालित होती है, जनता के द्वारा। जब नेताओं को विरोधी दल पर हमला करना होता है तो वे जनता का ही सहारा लेते हैं। जब उन्हें बोलने के लिए कुछ भी नहीं सूझता तो जनता के कंधे पर ही हाथ घुमाते हैं। जनता फलां पार्टी या दल को माफ नहीं करेगी, जबकि माफ वो खुद नहीं करना चाहते। जनता चुनाव में बदला लेगी, जबकि वो खुद बदला लेना चाहते हैं। तथाकथित नताओं को जैसे जनता के मनोविज्ञान पर अधिकार है। जैसे वे जनता की भावनाओं के अनुसार ही हर काम करते हैं। हर घात में जनता, प्रतिघात में जनता। खोजें कहां है जन की सत्ता? अक्सर कहा जाता है- ये जो पब्लिक है, सब जानती है। सचमुच पब्लिक ही सब जान सकती है। उसे बहकाया भी नहीं जा सकता। लेकिन भारतीय लोकतंत्र में पब्लिक कहां है? जनता है। लोक है। इसी से जनमत है, लोकमत है। कारण जो भी हो, यहां की जनता अभी पब्लिक नहीं बन सकी है। इसलिए इसे मुर्ख समझा जाता है। मुर्ख बनाया जाता है। मुर्ख बनाने का हथकंडा अपनाया जाता है। मुर्ख बनाये रखने का षड्यंत्र किया जाता है।  सियासत के दो ही खिलाड़ी हैं-पक्ष और विपक्ष। पहला जो कुछ भी बोले, दूसरा उसका विरोध करे। अपवाद स्वरूप ही  बमुश्किल किसी मुद्दे पर दोनों को एक होते देखे जाते हैं। जनता तो एसे अफसाने का केवल बहाना है। वह इसलिए कि जनता की स्वतंत्र कोई आवाज नहीं है। अगर पत्रकारिता और साहित्य के माध्यम से कुछ बोल भी लेती है तो उसे रैला-रैली और नारेबाजी का जाल बुन कर चुग लिया जाता है। घास की मानिंद चर लिया करता है। जनता एकटक देखती रह जाती है और नेता चुपके से अपनी पीठ थपथपा फिर सामने आता है। फिर वही खेल होता है। फिर-फिर ऐसा ही किया जाता है। क्या जनता का अर्थ विकल्प की प्रतिबद्धता में किसी एक पर बटन दबाना है? क्या लोकतंत्र का अर्थ जनता को मुर्ख बनाना है? बहाना चाहे जो हो, लेकिन देश महज कागज पर बना नक्शा नहीं होता।   

1 comment :

  1. janta moorkh bhi hai aur swarthi bhi kahin vah banayi jati hai aur kahin vah swayam bantati hai .

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